SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ राजप्रश्नोयसूत्र ९०--इसके बाद उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने एकतोवक्र (जिस नाटक में एक ही दिशा में धनुषाकार श्रेणि बनाई जाती है), एकतश्चक्रवाल (एक ही दिशा में चक्राकार श्रेणि बने), द्विघातश्चक्रवाल (परस्पर सम्मुख दो दिशाओं में चक्र बने) ऐसी चक्रार्ध-चक्रवाल नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। ६१-चंदावलिपविभत्ति च सूरावलिपविति च वलयावलिपविभत्ति च हंसावलिप०' च एगावलिप० च तारावलिप० मुत्तालिप० च कणगावलिप० च रयणावलिप० च णाम दिव्वं गट्टविहिं उवदर्सेति / 91-- इसी प्रकार अनुक्रम से उन्होंने चन्द्रावलि, सूर्यावलि, वलयावलि, हंसावलि, एकावलि, तारावलि, मुक्तावलि, कनकावलि और रत्नावलि की प्रकृष्ट-विशिष्ट रचनाओं से युक्त दिव्य नाट्यविधि का अभिनय प्रदर्शित किया। ६२-चंदुग्गमणप. च सूरुग्गमणप० च उग्गमणुगमणप० च णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेंति / ६२–तत्पश्चात् उन देवकुमारों और कुमारियों ने उक्त क्रम से चन्द्रोद्गमप्रविभक्ति, सूर्योद्गम प्रविभक्ति युक्त अर्थात् चन्द्रमा और सूर्य के उदय होने की रचना वाले उद्गमनोद्गमन नामक दिव्य नाट्यविधि को दिखाया। ६३-चंदागमणप० च सूरागमणप० च भागमणागमणप० च णामं२..."उवदंसेति / ६३-इसके अनन्तर उन्होंने चन्द्रागमन, सूर्यागमन की रचना वाली चन्द्र सूर्य आगमन नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय किया। ९४—चंदावरणप० सूरावरणप० च प्रावरणावरणप० णाम उवदंसेंति / ९४-तत्पश्चात् चन्द्रावरण सूर्यावरण अर्थात् चन्द्रग्रहण और सूर्य ग्रहण होने पर जगत् और गगन मण्डल में होने वाले वातावरण की दर्शक आवरणावरण नामक दिव्य नाट्यविधि को प्रदर्शित किया। ६५-चंदत्थमणप० च सूरस्थमणप० अस्थमणऽत्थमणप० णामं उवदंसेंति / ६५-इसके बाद चन्द्र के अस्त होने, सूर्य के अस्त होने की रचना से युक्त अर्थात् चन्द्र और सूर्य के अस्त होने के समय के दृश्य से युक्त अस्तमयनप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का अभिनय किया। ___९६--चंदमंडलप० च सूरमंडलप० च नागमंडलप० च जक्खमंडलप० च भूतमंडलप० च रक्खस-महोरग-गन्धव्वमंडलप० च मंडलमंडलप० नाम उवदंसेंति / 1. 'प०' अक्षर सर्वत्र 'पवित्ति ' शब्द का सूचक है। 2. 'णाम' शब्द से सर्वत्र ‘णामं दिव्वं णदृविहं' यह पद ग्रहण करना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy