________________ 18. त-वर्ग की प्राकृतियों का अभिनय / 19. प-वर्ग को प्राकृतियों का अभिनय / 20. अशोक, आम्र, जंबू, कोशम्ब के पल्लवों का अभिनय / 21. पद्म, नाग, अशोक, चम्पक, आम्र, वन, वासन्ती, कुन्द, प्रतिमुक्तक और श्याम लता का अभिनय / 22. द्रुतनाट्य / 23. विलंबित नाट्य / 24. द्रुतविलंबित नाट्य / 25. अंचित.। 26. रिभित। 27. अंचितरिभित / 25. प्रारभट / 29. भसोल (अथवा भसल)८२ | 30. प्रारभटभसोल / 31. उत्पात, निपात, संकुचित, प्रसारित, रयारइय८३, भ्रांत और संभ्रांत क्रियाओं से सम्बन्धित अभिनय / 32. महावीर के च्यवन, गर्भसंहरण, जन्म, अभिषेक, बालक्रीडा, यौवनदशा, कामभोगलीला,८४ निष्क्रमण, तपश्चरण, ज्ञानप्राप्ति, तीर्थप्रवर्तन और परिनिर्वाण सम्बन्धी घटनाओं का अभिनय [66-84] / अन्य प्रागमों में अनेक स्थलों पर नाट्यविधियों का उल्लेख हुआ है / उत्तराध्ययन की वृत्ति के अनुसार जब ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती पद पर आसीन हुआ तो उसके सामने एक नट ‘मधुकरीगीत' नामक नाट्यविधि प्रदर्शित करता है। 5 सौधर्म इन्द्र के सामने सुधर्मा सभा में 'सौदामिनी' नाटक करने का भी उल्लेख है।८६ स्थानांगसूत्र में चार प्रकार के नाट्यों का वर्णन है--अंचित, रिभित, प्रारभट, भसोल / भरतनाट्यशास्त्र में एक सौ पाठ कर्ण माने हैं। कर्म का अर्थ है- अंग और प्रत्यंग की क्रियाओं को एक साथ करना / 79. नाट्यशास्त्र में द्रुत नामक लय का वर्णन है। 80. नाट्यशास्त्र में उल्लेख है। 51. नाट्यशास्त्र में 'पारभटी' एक वत्ति का नाम बताया गया है। 52. नाट्यशास्त्र में भ्रमर / 83. नाट्यशास्त्र में रेचित / जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में रेचकरेचित पाठ है। प्रारभटी शैली से नाचने वाले नट मंडलाकार रूप में रेचक अर्थात् कमर, हाथ, ग्रीवा को मटकाते हुए रास नृत्य करते थे। ---वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्षचरित, पृष्ठ-३३ 84. इससे महावीर की गृहस्थावस्था का सूचन होता है / 85. उत्तराध्ययन टीका-१३, पृष्ठ-१९६ 86. उत्तराध्ययन टीका-१८, पृष्ठ-२४० अ. 87. चउन्विहे पट्ट पण्णते, तं जहा-अंचिए, रिभिए, पारभडे, भसोले - स्थानाङ्ग 4 / 633 [ 27 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org