________________ तज्जीव-तच्छरीर-वाद मंडन-खंडन ] [171 उत्पन्न जीव शीघ्र ही चार कारणों से मनुष्यलोक में आने की इच्छा तो करते हैं, किन्तु वहाँ से आ नहीं पाते हैं / वे चार कारण इस प्रकार हैं 1. नरक में अधुनोत्पन्न नारक वहाँ की अत्यन्त तीव्र वेदना का वेदन करने के कारण मनुष्यलोक में शीघ्र पाने की आकांक्षा करते हैं, किन्तु आने में असमर्थ हैं / / 2. नरक में तत्काल नैरयिक रूप से उत्पन्न जीव परमाधार्मिक नरकपालों द्वारा बारंबार ताडित-प्रताड़ित किये जाने से घबराकर शीघ्र ही मनुष्यलोक में आने की इच्छा तो करते हैं, किन्तु वैसा करने में समर्थ नहीं हो पाते हैं / 3. अधुनोपपन्नक नारक मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा तो रखते हैं किन्तु नरक संबन्धी असातावेदनीय कर्म के क्षय नहीं होने, अननुभूत एवं अनिर्जीर्ण होने से वे वहाँ से निकलने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। 4. इसी प्रकार नरक संबंधी आयुकर्म के क्षय नहीं होने से, अननुभूत एवं अनिर्जीर्ण होने से नारक जीव मनुष्यलोक में आने की अभिलाषा रखते हुए भी वहाँ से पा नहीं सकते हैं / अतएव हे प्रदेशी ! तुम इस बात पर विश्वास करो, श्रद्धा रखो कि जीव अन्य-भिन्न है और शरीर अन्य है, किन्तु यह मत मानो कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है। विवेचन-नरक में से जीव के न आ सकने के इन्हीं कारणों का दीघनिकाय (बौद्ध ग्रन्थ) में भी इसी प्रकार से उल्लेख किया है। २४६–तए णं से पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वदासी-- अस्थि णं भंते ! एसा पण्णा उधमा, इमेण पुण कारणेण नो उवागच्छइ, एवं खलु भंते ! मम अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया जाव वित्ति कम्पेमाणी समणोवासिया अभिगयजोवा० सम्वो वण्णो जाध' अप्पाणं भावेमाणी विहरइ, सा गं तुझं वत्तब्धयाए सुबहुं पुन्नोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेस देवलोएस देवत्ताए उववण्णा, तीसे णं अज्जियाए अहं नत्तुए होत्था इदु कते जाव पासणयाए, तं जइ गं सा प्रज्जिया मम पागंत एवं वएज्जा-एवं खलु नत्तुया ! प्रहं तव अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया जाव वित्ति कप्पेमाणो समणो. वासिया जाव विहरामि / तए णं अहं सुबह पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता जाव देवलोएसु उववण्णा, तं तुम पि णत्तुया ! भवाहि धम्मिए जाव विहराहि, तए णं तुम पि एयं चेव सुबहुं पुष्णोवचयं समज्जिणित्ता जाव (कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए) उववज्जिहिसि / तं जइ णं अज्जिया मम प्रागंतु एवं वएज्जा तो गं अहं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोइज्जा जहानण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णोतं जीवो तं सरीरं। जम्हा सा अज्जिया ममं प्रागंतुणो एवं वदासी, तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा जहा--तं जीवो तं सरीरं, नो प्रनो जीवो अन्नं सरीरं। 1. देखें सूत्र संख्या 222 2. देखें सूत्र संख्या 244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org