________________ तज्जीव-तच्छरीरवाद मंडन-खंडन] [169 की सिद्धि करते हैं / किन्तु राजा को यह बात समझ में नहीं पाती है और वह पुनः कहता है-मेरे कुछ ज्ञातिजन एवं मित्र प्राणातिपात-हिंसा आदि पापकार्यों में निरत रहते थे, उनको मैंने कह रखा था कि हिंसादिक पापकार्यों से तुम नरक में जानो तो मुझे इसकी सूचना देना / लेकिन वे यहाँ आये नहीं और न कोई दूत भी भेजा। इसलिये परलोक नहीं है, मेरी यह श्रद्धा सुसंगत है।। २४५-तए णं केसी कुमारसमणे पसि रायं एवं वदासी-अस्थि णं पएसी ! तव सूरियकता णामं देवी? हंता अस्थि / ___ जइ णं तुमं पएसी! तं सूरियकंतं देविं हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमंगलपायच्छित्तं सवालंकारविभूसियं केणइ पुरिसेणं व्हाएणं जाव सन्वालंकारविमूसिएणं सद्धि इ8 सद्द-फरिस-रस-रूव. गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणि पासिज्जासि, तस्स णं तुम पएसी ! पुरिसस्स के दंडं निव्वत्तेज्जासि? अहं णं भंते ! तं पुरिसं हत्थच्छिण्णगं वा, सूलाइगं वा, सूलभिन्नगं वा, पायछिन्नगं वा, एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवएज्जा। अह णं पएसी से पुरिसे तुम एवं वदेज्जा—'मा ताव मे सामी ! मुहत्तगं हत्थछिण्णगं वा जाव . जीवियानो ववरोवेहि जाव ताव अहं मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं एवं वयामि एवं खलु देवाणुप्पिया! पावाइं कम्माइं समायरेत्ता इमेयारूवं प्रावई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणुप्पिया! तुम्भे वि केइ पावाई कम्माइं समायरह, मा णं से वि एवं चेव प्रावई पाविज्जिहिह जहा णं अहं / ' तस्स णं तुम पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमट्ठ पडिसुणेज्जासि ? णो तिण? सम?। कम्हा गं? जम्हा पं भंते ! प्रवराही णं से पुरिसे। एवामेव पएसी ! तव वि अज्जए होत्था, इहेव सेयवियाए णयरीए अधम्मिए जाव' णो सम्म करभरवित्ति पवत्तेइ, से णं अम्हं वत्तम्बयाए सुबहुं जाव उववन्नो, तस्स णं प्रज्जगस्स तुमं णत्तुए होत्था इट्रे कंते जाव' पासणयाए। से णं इच्छइ माणसं लोगं हब्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमाच्छित्तए। चहि ठाणेहि पएसी प्रहुणोववण्णए नरएसु नेरइए इच्छेइ माणुसं लोग हन्वमागच्छित्तए नो चेव णं संचाएइ 1. प्रहुणोववन्नए नरएसु नेरइए से णं तत्थ महब्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेज्जा माणुस्सं लोगं हव्वं (प्रागच्छित्तए) णो चेव णं संचाएइ / 2. अहुणोववन्नए नरएसु नेरइए निरयपालेहि भुज्जो-भुज्जो समहिट्ठिज्जमाणे इच्छइ माणुसं लोगं हवमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ / 1. देखें सूत्र संख्या 226 2. देखें सूत्र संख्या 244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org