________________ केशी कुमारश्रमण को देखकर प्रदेशी का चिन्तन ] [161 मणपज्जवनाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उज्जुमई य, विउलमई य, तहेव केवलनाणं सव्व भाणियव / तस्थ णं जे से प्राभिणिबोहियनाणे से णं ममं अस्थि, तत्थ गंजे से सुयनाणे से वि य मम अत्यि, तत्थ णं जे से ओहिणाणे से वि य ममं अस्थि, तत्थ णं जे से मणपज्जवनाणे से वि य ममं अस्थि, तस्थ णं जे से केवलनाणे से णं मम नत्थि, से गं अरिहंताणं भगवंताणं / इच्चेएणं पएसी अहं तव चउबिहेणं छउमत्थेणं णाणेणं इमेयारूव अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं जाणामि पासामि। २४१-तब केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा से इस प्रकार कहा-हे प्रदेशी ! निश्चय ही हम निर्ग्रन्थ श्रमणों के शास्त्रों में ज्ञान के पाँच प्रकार बतलाये हैं। वे पाँच यह हैं--(१) आभिनिबोधिकज्ञान (मतिज्ञान), (2) श्रुतज्ञान (3) अवधिज्ञान (4) मनःपर्यायज्ञान और (5) केवलज्ञान / प्रदेशी--प्राभिनिबोधिक ज्ञान कितने प्रकार का है ? केशी कुमारश्रमण-आभिनिबोधिकज्ञान चार प्रकार का है-अवग्रह, ईहा, अवाय धारणा / प्रदेशी-अवग्रह कितने प्रकार का है ? केशी कुमारश्रमण-अवग्रह ज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया है इत्यादि धारणा पर्यन्त आभिनिबोधिक ज्ञान का विवेचन नंदीसूत्र के अनुसार जानना चाहिए / प्रदेशी-श्रुतज्ञान कितने प्रकार का है ? केशी कुमारश्रमण-श्रुतज्ञान दो प्रकार का है, यथा अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य / दृष्टिवाद पर्यन्त श्रुतज्ञान के भेदों का समस्त वर्णन नन्दीसूत्र के अनुसार यहाँ करना चाहिए / भवप्रत्ययिक और क्षायोपशमिक के भेद से अवधिज्ञान दो प्रकार का है। इनका विवेचन भी नंदीसूत्र के अनुसार यहाँ जान लेना चाहिए। मनःपर्यायज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा ऋजुमति और विपुलमति / नंदीसूत्र के अनुरूप इनका भी वर्णन यहाँ करना चाहिए। इसी प्रकार केवलज्ञान का भी वर्णन यहां करना चाहिए। इन पाँच ज्ञानों में से पाभिनिबोधिक ज्ञान मुझे है, श्रुतज्ञान मुझे है, अवधिज्ञान भी मुझे है, मनःपर्याय ज्ञान भी मुझे प्राप्त है, किन्तु केवलज्ञान प्राप्त नहीं है / वह केवलज्ञान अरिहंत भगवन्तों को होता है। इन चतुर्विध छाद्मस्थिक ज्ञानों के द्वारा हे प्रदेशी ! मैंने तुम्हारे इस प्रकार के आन्तरिक यावत् मनोगत संकल्प को जाना और देखा है। विवेचन-सूत्र में जैनदर्शनमान्य आभिनिबोधिक (मति) आदि पांच ज्ञानों के नाम और उन ज्ञानों के कतिपय अवान्तर भेदों का उल्लेख करके शेष विस्तृत वर्णन नंदीसूत्र के अनुसार करने का संकेत किया गया है / नन्दीसूत्र के आधार से उन मति आदि पांच ज्ञानों का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org