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________________ 126] राजप्रश्नीयसूत्र अणुविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छइ, सोहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। २०२--इसके बाद सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों यावत् (परिवार सहित चार अग्र महिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों-सेनाओं, सात अनिकाधिपतियों सोलह हजार प्रात्मरक्षक देवों तथा और दूसरे भी बहुत से सूर्याभ विमानवासी देव-देवियों से परिवेष्टित होकर सर्व ऋद्धि यावत् तुमुल वाद्यध्वनि पूर्वक जहाँ सुधर्मा सभा थी वहाँ पाया और पूर्व दिशा के द्वार से सुधर्मा सभा में प्रविष्ट हुअा। प्रविष्ट होकर सिंहासन के समीप पाया और पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया। सूर्याभदेव का सभा-वैभव २०५----तए णं तस्स सरियाभस्स देवस्स अवरत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं दिसिमाएणं चत्तारि य सामाणियसाहस्सोमो चउसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति / तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पुरथिमिल्लेणं चत्तारि प्रग्गमहिस्सोमो चउसु भद्दासणेसु निसीयंति। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपुरस्थिमेणं अभितरियपरिसाए अट्ट देवसाहस्सीनो अट्ठसु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति / तए णं तस्स सरियाभस्स देवस्स दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए दस देवसाहस्सीनो दससु, भद्दासणसाहस्सोसु निसीयंति / तए णं तस्स सूरियामस्स देवस्स दाहिणपच्चस्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीग्रो बारससु भद्दासणसाहस्सीसु निसीयंति / तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पच्चत्थिमेणं सत्त प्रणियाहिवइणो सहि महासणेहि णिसी यति / तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चउद्दिसि सोलस प्रायरक्खदेवसाहस्सोप्रो सोलसहि भद्दासणसाहस्सोहि णिसीयंति, तंजहा पुरथिमिल्लेणं चत्तारि साहस्सीओ०। तेणं प्राय रक्खा सन्नद्धबद्धवम्मियकवया, उप्पीलियसरासणपट्टिया, पिणद्ध गेविज्जा प्राविद्धविमलवरचिधपढ़ा, गहियाउहपहरणा, तिणयाणि तिसंधियाई वयरामयकोडीणि धणई पगिज्झ पडियाइयकंडकलावा णीलपाणिणो, पीतवाणिणो, रत्तपाणिणो. चावपाणिणो-चारुपाणिणो. चम्मपाणिणो. दंडपाणिणो, खम्गपाणिणो, पासपाणिणो, नीलपीयरत्तचावचारुचम्मदंडखग्गपासधरा, पायरक्ख रक्खोवगा, गुत्ता, गुत्तपालिया जुत्ता, जुत्तपालिया पत्तेयं-पत्तेयं समयसो विणयओ किंकरभूया चिट्ठति / २०५--तदन्तर उस सूर्याभदेव की पश्चिमोत्तर और उत्तरपूर्व दिशा में स्थापित चार हजार भद्रासनों पर चार हजार सामानिक देव बैठे। उसके बाद सूर्याभ देव की पूर्व दिशा में चार भद्रासनों पर चार अग्रमहिषियाँ बैठीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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