SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्धायतन ] हूई, गंभीर गहरी है। जसे गंगा किनारे की बालू में पांव रखने से पांव धंस जाता है, उसी प्रकार बैठते ही नीचे की ओर धंस जाते हैं। उस पर रजस्त्राण पड़ा रहता है-मसहरी लगी हुई है। कसीदा वाला क्षौमदुकूल (रूई का बना चद्दर) बिछा है / उसका स्पर्श प्राजिनक (मृगछाला, चर्मनिर्मित वस्त्र) रूई. बर नामक वनस्पति, मक्खन और पाक की रुई के समान सुकोमल है। रक्तांशुकलाल तूस से ढका रहता है / अत्यन्त रमणीय, मनमोहक यावत् असाधारण सुन्दर है। आयुधगृह-शस्त्रागार १७६–तस्स णं देवसणिज्जस्स उत्तरपुरस्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता-प्रद जोयणाई प्रायाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोप्रणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमयो जाव पडिरूवा। तीसे णं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं महेगे खुड्डए महिंदज्झए पण्णत्ते, सट्टि जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं, जोयणं विक्खंभेणं वइरामया बदृलट्टसंठियसुसिलिट्ठ जाव पडिरूवा / उरि अट्ठ मंगलगा, झया, छत्तातिछत्ता। तस्स गं खुड्डागहिंदज्झयस्स पच्चस्थिमेणं एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स चोपाले नाम पहरणकोसे पन्नत्ते, सव्ववइरामए अच्छे जाव पडिरूवे / तत्थ णं सरियाभस्स देवस्स फलिहरयण-खग्ग-गया-धगुप्पमुहा बहवे पहरणरयणा संनिक्खिता चिट्ठति, उज्जला निसिया सुतिक्खधारा पासादीया.... . सभाए णं सुहम्माए उरि अट्ठमंगलगा, झया, छत्तातिछत्ता / १७६-उस देव-शय्या के उत्तर-पूर्व दिग्भाग (ईशान-कोण) में पाठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटो सर्वमणिमय यावत् प्रतिरूप एक बड़ी मणिपीठिका बनी है। उस मणिपीठिका के ऊपर साठ योजन ऊँचा, एक योजन चौड़ा, वज्ररत्नमय सुन्दर गोल आकार वाला यावत् प्रतिरूप एक क्षुल्लक छोटा माहेन्द्रध्वज लगा हुआ है--फहरा रहा है। जो स्वस्तिक आदि पाठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से उपशोभित है। उस क्षुल्लक माहेन्द्रध्वज की पश्चिम दिशा में सूर्याभदेव का 'चोप्पाल' नामक प्रहरणकोश (प्रायुधगृह-शस्त्रागार) बना हुआ है / यह आयुधगृह सर्वात्मना रजतमय, निर्मल यावत् प्रतिरूप है / उस प्रहरणकोश में सूर्याभ देव के परिघरत्न, (मूसल, लोहे का मुद्गर जैसा शस्त्रविशेष तलवार, गदा, धनुष आदि बहुत से श्रेष्ठ प्रहरण (अस्त्र-शस्त्र) सुरक्षित रखे हैं। वे सभी शस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल, चमकीले, तीक्ष्ण धार वाले और मन को प्रसन्न करने वाले प्रादि हैं। सुधर्मा सभा का उपरी भाग पाठ-पाठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से सुशोभित हो रहा है। सिद्धायतन १७७-सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं महेगे सिद्धायतणे पण्णत्ते, एगं जोयण Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy