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________________ 98 ] [ राजप्रश्नीयसूत्र बहुत से रजतमय सीके लटक रहे हैं। उन रजतमय सींकों में वज्रमय गोल गोल समुद्गक (डिब्बे) रखे हैं / उन गोल-गोल वज्ररत्नमय समुद्गकों में बहुत-सी जिन-अस्थियाँ सुरक्षित रखी हुई हैं। __ वे अस्थियां सूर्याभदेव एवं अन्य देव-देवियों के लिए अर्चनीय यावत् (वंदनीय, पूजनीय, संमाननीय, सत्करणीय तथा कल्याण, मंगल देव एवं चैत्य रूप में) पर्युपासनीय हैं। उस माणवक चैत्य के ऊपर पाठ पाठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं / देव-शय्या १७५-तस्स माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, अट्ठ जोयणाई अायाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोषणाई बाहल्लेणं सब्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा / तीसे णं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं महेगे सीहासणे पण्णत्ते, सीहासणवण्णओ सपरिवारो। तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चस्थिमेणं एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पण्णत्ता, अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सध्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं मणिपेढियाए उरि एस्थ णं महेगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते। तस्स णं देवसणिज्जस्स इमेयारवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा–णाणामणिमया पडिपाया, सोवनिया पाया, णाणामणिमयाई पायसोसगाई, जंबूणयामयाइं गत्तगाई, वइरामया संधो, णाणामणिमए विच्चे, रययामई तूली, लोहियक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमया गंडोबट्टाणया / से णं सयणिज्जे सालिगणवट्टिए उभो बिब्बोयणं दुहमओ उण्णते, मज्झे णयगंभोरे गंगापुलिणवालुया-उद्दालसालिसए, सुविरइयरयत्ताणे, उचियखोमदुगुल्लपट्ट-पडिच्छायणे आईणग-रूय-बूरगवणीय-तूलफासमउए, रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे पासादीए पडिरूवे। १७५–उस माणवक चैत्यस्तम्भ के पूर्व दिग्भाग में विशाल मणिपीठिका बनी हुई है। जो आठ योजन लंबी-चौड़ी, चार योजन मोटी और सर्वात्मना मणिमय निर्मल यावत् प्रतिरूप है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल सिंहासन रखा है। भद्रासन आदि आसनों रूप परिवार सहित उस सिंहासन का वर्णन करना चाहिए / उस माणवक चैत्यस्तम्भ की पश्चिम दिशा में एक बड़ी मणिपीठिका है। वह मणिपीठिका आठ योजन लम्बी चौड़ी, चार योजन मोटी, सर्व मणिमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् असाधारण सुन्दर है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक श्रेष्ठ रमणीय देव-शय्या रखी हुई है। उस देवशय्या का वर्णन इस प्रकार है, यथा-इसके प्रतिपाद अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए हैं / स्वर्ण के पाद-पाये हैं। पादशीर्षक (पायों के ऊपरी भाग) अनेक प्रकार की मणियों के हैं / गाते (ईषायें, पाटियां) सोने को हैं / सांधे वज्ररत्नों से भरी हुई हैं। बाण (निवार) विविध रत्नमयी है। तूली (बिछौना-गादला) रजतमय है। प्रोसीसा लोहिताक्षरत्न का है। गंडोपधानिका (तकिया) सोने की है। उस शय्या पर शरीर प्रमाण उपधान-गद्दा बिछा है। उसके शिरोभाग और चरणभाग (सिरहाने और पांयते) दोनों ओर तकिये लगे हैं। वह दोनों ओर से ऊँची और मध्य में नत-झुकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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