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________________ पदमवर वैदिका का वर्णन] [89 यह वनखंड चारों ओर से एक परकोटे से घिरा हुआ है तथा वृक्षों की सघनता से हरा-भरा अत्यन्त शीतल और दर्शकों के मन को सुखप्रद है / वनखंड का भूभाग अत्यन्त सम तथा अनेक प्रकार की मणियों और तृणों से उपशोभित है / इस वनखंड में स्थान-स्थान पर अनेक छोटी बड़ी बावड़ियां, पुष्करणियां, गुजालिकायें आदि बनी हैं / इन सबके तट रजतमय हैं और तल भाग में स्वर्ण-रजतमय बालुका बिछी हुई है। कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुंडरीक आदि विविध जाति के कमलों से इनका जल आच्छादित है। इन वापिकाओं आदि के अन्तरालवर्ती स्थानों में मनुष्यों और पक्षियों के झूलने के लिये झूले-हिंडोले पड़े हैं और बहुत से उत्पातपर्वत, नियतिपर्वत, दारुपर्वत, दकमंडप, दकमालक दकमंच बने हुए हैं। इन वनखण्डों में कहीं-कहीं आलिगृह, मालिगृह, कदलीगृह, लतागृह, मंडप आदि बने हैं और विश्राम करने के लिये जिनमें हंसासन आदि अनेक प्रकार के प्रासन तथा शिलापट्टक रखे हैं और जहाँ बहुत से देव-देवियां आ-आकर विविध प्रकार को क्रीड़ायें करते हुए पूर्वोपाजित पुण्यकर्मों के फलविपाक को भोगते हुए आनन्दपूर्वक विचरण करते हैं। १६०-तस्स णं उवयारियालेणस्स चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वष्णो, तोरणा, झया, छत्ताइच्छत्ता। तस्स णं उवयारियालयणस्स उर्वार, बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं फासो। १६०-उस उपकारिकालयन की चारों दिशाओं में चार त्रिसोपानप्रतिरूपक (तीन-तीन सीढ़ियों की पंक्ति) बने हैं। यान विमान के सोपानों के समान इन त्रिसोपान-प्रतिरूपकों का वर्णन भी तोरणों, ध्वजाओं, छत्रातिछत्रों आदि पर्यन्त यहाँ करना चाहिये। उस उपकारिकालयन के ऊपर अतिसम, रमणीय भूमिभाग है। यानविमानवत् मणियों के स्पर्शपर्यन्त इस भूमिभाग का वर्णन यहाँ करना चाहिये / विवेचन--उपकारिकालयन को त्रिसोपान-पंक्तियों और भूमिभाग का वर्णन यानविमानवत् करने की सूचना प्रस्तुत सूत्र में दी गयी है। संक्षेप में उक्त वर्णन इस प्रकार है ___ इन त्रिसोपानों की नेम वज्ररत्नों से बनी हुई हैं / रिष्टरत्नमय इनके प्रतिष्ठान (पैर रखने के स्थान) हैं / वैडूर्य रत्नों से बने इनके स्तम्भ हैं और फलक-पाटिये स्वर्ण रजतमय हैं / नाना मणिमय इनके अवलंबन और कटकड़ा हैं / मन को प्रसन्न करने वाले अतीव मनोहर हैं / इन प्रत्येक त्रिसोपान-पंक्तियों के आगे अनेक प्रकार के मणि-रत्नों से बने हुए बेलबूटों आदि से सुशोभित तोरण बंधे हैं और तोरणों के ऊपरी भाग स्वस्तिक आदि आठ-पाठ मंगलों एवं वज्ररत्नों से निर्मित और कमलों जैसी सुरभिगंध से सुगंधित, रमणीय चामरों से शोभित हो रहे हैं। इसके साथ ही अत्यन्त शोभनीक रत्नों से बने हुए छत्रातिछत्र, पताकायें, घंटा-युगल एवं उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक पुंडरीक, महापुडरीक आदि कमलों के झूमके भी उन तोरणों पर लटक रहे हैं आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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