________________ बनखंडवर्ती ग्रहों एवं मण्डपों का वर्णन] [81 वनखंडवर्ती गृहों का वर्णन १४७–तेसु णं वणसंडेसु तत्थ-तत्थ तहि-तहिं देसे-देसे बहवे प्रालियघरगा, मालियघरगा, कलिघरगा, लयाघरगा, अच्छणधरगा, पिच्छणधरगा, मज्जणघरगा, पसाहणघरगा, गब्भघरगा, मोहणघरगा, सालघरगा, जालघरगा, कुसुमघरगा, चित्तघरगा, गंधव्वघरगा, आयंसघरगा सन्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। १४७---उन वनखंडों में यथायोग्य स्थानों पर बहुत से आलिगृह (वनस्पतिविशेष से बने हुए गृह जैसे मंडप) मालिगृह (वनस्पतिविशेष से बने हुए गृह) कदलीगृह, लतागृह, आसनगृह, (विश्राम करने के लिये बैठने योग्य आसनों से युक्त घर) प्रेक्षागृह (प्राकृतिक शोभा के अवलोकन हेतु बने विश्रामगृह अथवा नाटयगृह) मज्जनगृह (स्नानघर) प्रसाधनगृह (शृगार-साधनों से सुसज्जित स्थान) गर्भगृह (भीतर का घर), मोहनगृह (रतिक्रीड़ा करने योग्य स्थान), शालागृह, जाली वाले गृह, कुसुमगृह, चित्रगृह (चित्रों से सज्जित स्थान) गंधर्वगृह (संगीत-नृत्य शाला) आदर्शगृह (दर्पणों से बने हुए भवन) सुशोभित हो रहे हैं। ये सभी गृह रत्नों से बने हुए अधिकाधिक निर्मल यावत् असाधारण मनोहर हैं। १४८-तेसु णं प्रालियघरगेसु जाव' प्रायंसघरगेसु तहि तहिं घरएसु हंसासणाई जाव दिसासोवत्थिनासणाई सम्वरयणामयाई जाव पडिरूवाई। १४८-उन प्रालिगृहों यावत् आदर्शगृहों में सर्वरत्नमय यावत् अतीव मनोहर हंसासन यावत् दिशा-स्वस्तिक आसन रखे हैं / वनखंडवों मंडपों का वर्णन १४६-तेसु णं वणसंडेसु तत्थ-तत्थ देसे तहि तहि बहवे जातिमंडवगा, जहियामंडवगा मल्लियामंडवगा, णवमालियामंडवगा, वासंतिमंडवगा, दहिवासुयमंडवगा, सूरिल्लियमंडवगा तंबोलिमंडवगा, मुद्दियामंडवगा, गागलयामंडवगा, अतिमुत्तयलयामंडवगा, अप्फोयामंडगा, मालुया. मंडवगा, अच्छा सव्वरयणामया जाव पडिरूवा / १४९-उन वनखंडों में विभिन्न स्थानों पर बहुत से जातिमंडप (जाई के कुज), यूथिकामंडप (जूही को बेल के मंडप), मल्लिकामंडप, नवमल्लिकामंडप, वासंतीमंडप, दधिवासुका (वनस्पतिविशेष) मंडप, सूरिल्लि (सूरजमुखी) मंडप, नागरबेलमंडप, मृद्वीकामंडप (अंगूर की बेल के मंडप) नागलतामंडप, अतिमुक्तक (माधवीलतामंडप, अप्फोया मंडप और मालुकामंडप बने हुए हैं। ये सभी मंडप अत्यन्त निर्मल, सर्वरत्नमय यावत् प्रतिरूप-अतीव मनोहर हैं। विवेचन-लता और बेलों से बने इन मंडपों में बहुत सी सुगंधित पुष्पों वाली लतायें और बेलें तो प्रसिद्ध हैं, परन्तु कुछ एक नामों के बारे में जानकारी नहीं मिलती है। जैसे दधिवासुका 1. देखें सूत्र संख्या 147 2. देखें सूत्र संख्या 146 3. पाठान्तर-सूरल्लि, सूरमल्लि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org