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________________ तप का विवेचन से कि तं संसारविउस्सग्गे ? संसारविउस्सग्गे चविहे पण्णत्ते / तं जहा–१ णेरइयसंसारविउस्सग्गे, 2 तिरियसंसारबिउस्सग्गे, 3 मणुयसंसारविउस्सग्गे, 4 देवसंसारविउस्सग्गे, से तं संसारविउस्सग्गे। से कि त कम्मविउस्सग्गे ? कम्मविउस्सग्गे अविहे पण्णत्ते / तं जहा–१ णाणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे 2 दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे 1 वेयणिज्जकम्मविउस्सग्गे 2 मोहणिज्जकम्मविउस्सग्गे 3 ग्राउयकम्मविउस्सग्गे 4 णामकम्मधिउस्सग्गे 5 गोयकम्मविउस्सग्गे 6 अंतरायकम्मविउस्सगे। सेतं कम्मविउस्सग्गे. से तंभावविउस्सगे। ३०---इस प्रकार विहरणशील वे श्रमण भगवान प्राभ्यन्तर तथा बाह्य तपमूलक प्राचार का अनसरण करते थे। प्राभ्यन्तर तप छह प्रकार का है तथा बाह्य तप भी छह प्र का है। बाह्य तप क्या है ? –वे कौन-कौन से हैं ? बाह्य तप छह प्रकार के हैं१. अनशन-ग्राहार नहीं करना, 2. अवमोदरिका-भूख से कम खाना या द्रव्यात्मक, भावात्मक साधनों को कम उपयोग में लेना, 3. भिक्षाचर्या -भिक्षा से प्राप्त संयत जीवनोपयोगी आहार, वस्त्र, पात्र, औषध आदि वस्तुएं ग्रहण करना अथवा वृत्तिसंक्षेप-आजीविका के साधनों का संक्षेप करना, उन्हें घटाना, 4. रस-परित्याग सरस पदार्थों को छोड़ना या रसास्वाद से विमुख होना, 5. कायक्लेश-इन्द्रिय-दमन या सुकुमारता, सुविधाप्रियता, पारामतलबी छोड़ने हेतु तदनुरूप कष्टमय अनुष्ठान स्त्रोकार करना, 6. प्रतिसंलोनता आभ्यन्तर तथा बाह्य चेष्टाएं संवृत करने हेतु तदुपयोगी बाह्य उपाय अपनाना / अनशन क्या है-वह कितने प्रकार का है ? अनशन दो प्रकार का है -- 1. इत्वरिकमर्यादित समय के लिए आहार का त्याग। 2. यावत्कथिक --जीवनभर के लिए आहार-त्याग। - इत्वरिक क्या है वह कितने प्रकार का है? इत्वरिक अनेक प्रकार का बतलाया गया है, भक्त-एक दिन-रात के लिए आहार का त्याग--उपवास, षष्ठ भक्त-दो दिन-रात के लिए आहार-त्याग, निरन्तर दो उपवास---बेला, अष्टम भक्त-तीन उपवास-तेला, दशम भक्त --चार दिन के उपवास, द्वादश भक्त–पाँच दिन के उपवास, चतुर्दश भक्त छह दिन के उपवास षोडश भक्त---सात दिन के उपवास, अर्द्धमासिक भक्त-प्राधे महीने या पन्द्रह दिन के उपवास, मासिक भक्त-एक महीने के उपवास, द्वैमासिक भक्त-दो महीनों के उपवास, त्रैमासिक भक्त---- तीन महीनों के उपवास, चातुर्मासिक भक्त-चार महीनों के उपवास, पाञ्चमासिक भक्त–पांच महीनों के उपवास, पाण्मासिक भक्त-छह महीनों के उपवास / यह इत्वरिक तप का विस्तार है। यावत्कथिक क्या है.-उसके कितने प्रकार हैं ? यावत्कथिक के दो प्रकार हैं--- 1. पादपोपगमन कटे हुए वृक्ष की तरह स्थिर-शरीर रहते हुए आजोवन आहार-त्याग 2. भक्तपानप्रत्याख्यान --- जोवनपर्यन्त प्राहार-त्याग। _पादपोपगमन क्या है--उसके कितने भेद हैं ? पादपोपगमन के दो भेद हैं-१. व्याघातिमव्याघातवत् या विघ्नयुक्त सिंह आदि प्राणघातक प्राणी या दावानल प्रादि उपद्रव उपस्थित हो जाने पर जीवन भर के लिए आहार-त्याग, 2. निर्याघातिम---नियाघातवत्-विघ्नरहित-सिंह, दावानल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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