________________ 32] [औपपातिकसुत्र महासिंहनिष्क्रीडित तपःक्रम इस प्रकार है साधक क्रमशः उपवास, बेला, उपवास, तेला, बेला, चार दिन का उपवास, तेला, पाँच दिन का उपवास, चार दिन का उपवास, छह दिन का उपवास, पांच दिन का उपवास, सात दिन का उपवास, छह दिन का उपवास, पाठ दिन का उपवास, सात दिन का उपवास, नौ दिन का उपवास, आठ दिन का उपवास, दश दिन का उपवास, नो दिन का उपवास, ग्यारह दिन का उपवास, दश दिन का उपवास, बारह दिन का उपवास, ग्यारह दिन का उपवास, तेरह दिन का उपवास, बारह दिन का उपवास, चवदह दिन का उपवास, तेरह दिन का उपवास, पन्द्रह दिन का उपवास, चवदह दिन का उपवास, सोलह दिन का उपवास, पन्द्रह दिन का उपवास करे। तत्पश्चात् इसी क्रम को उलटा करे अर्थात् सोलह दिन के उपवास से प्रारम्भ कर एक दिन के उपवास पर समाप्त करे / यह क्रम इस प्रकार होगा ___ सोलह दिन का उपवास, चवदह दिन का उपवास, पन्द्रह दिन का उपवास, तेरह दिन का उपवास, चवदह दिन का उपवास, बारह दिन का उपवास, तेरह दिन का उपवास, ग्यारह दिन का उपवास, बारह दिन का उपवास, दश दिन का उपवास, ग्यारह दिन का उपवास, नौ दिन का उपवास, दश दिन का उपवास, आठ दिन का उपवास, छह दिन का उपवास, सात दिन का उपवास, पाँच दिन का उपवास, छह दिन का उपवास, चार दिन का उपवास, पांच दिन का उपवास, तेला, चार दिन का उपवास, बेला, उपवास, बेला तथा उपवास करे। इस तप की एक परिपाटी में 1+2+1+3+2+4+3+5+4+6+5+7+6+8 +7+9+8+10+1+11+10 +12+11+13+12+14+13+1+14+16+ 15+16 +14+15 +13+14+12-13+1+12+1+1+1+10+4+8+ 7+6+6+7+5+6+4+5+3+4+2+3+1+2+1=497 दिन उपवास+६१ दिन पारणा = कुल 558 दिन = एक वर्ष छह महीने तथा अठारह दिन लगते हैं। महासिंहनिष्क्रीडित तप की चारों परिपाटियों में 558+558+558+558-2232 दिन = छह वर्ष दो महीने और बारह दिन लगते हैं। भद्र प्रतिमा यह प्रतिमा कायोत्सर्ग से सम्बद्ध है। कायोत्सर्ग निर्जरा के बारह भेदों में अंतिम है। यह काय तथा उत्सर्ग-इन दो शब्दों से बना है। काय का अर्थ शरीर तथा उत्सर्ग का अर्थ त्याग है। शरीर को सर्वथा छोड़ा जा सके, यह तो संभव नहीं है पर भावात्मक दृष्टि से शरीर से अपने को पृथक् मानना, शरीर की प्रवृत्ति, हलन-चलन आदि क्रियाएं छोड़ देना, यों निःस्पन्द, असंसक्त, प्रात्मोन्मुख स्थिति पाने हेतु यत्नशील होना कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग में साधक अपने आपको देह से एक प्रकार से पृथक् कर लेता है, देह को शिथिल कर देता है, तनावमुक्त होता है, आत्मरमण में संस्थित होने का प्रयत्न करता है।। इस प्रतिमा में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, तथा उत्तर दिशा में मुख कर क्रमशः प्रत्येक दिशा में चार पहर तक कायोत्सर्ग करने का विधान है। यों इस प्रतिमा का सोलह पहर या दो दिन-रात का कालमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org