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________________ 2 [औपातिकसूत्रं अष्टम वर्ग के द्वितीय अध्ययन में महाराज श्रेणिक को एक दूसरी रानी सुकाली का वर्णन है। उसने भी श्रमण भगवान महावीर से दीक्षा ग्रहण की। उसने प्रार्याप्रमुखा चन्दनबाला की आज्ञा से कनकावली तप करना स्वीकार किया। रत्नावली और कनकावली तप में थोड़ा सा अन्तर है। अतः वहाँ रत्नावली तप से कनकावली तप में जो विशेषता है, उसकी चर्चा कर दी गई है / ' कनकावली का अर्थ सोने का हार है / रत्नों के हार से सोने का हार कुछ अधिक भारी होता है। इसी आधार पर रत्नावली की अपेक्षा कनकावली कुछ भारी तप है। छठें कनकावली वीसइम करेइ, करेत्ता सम्वकामगुणियं पारेइ / सोलसम करेइ, करेत्ता सम्बकामगुणिय पारेइ / बावीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सम्वकामगुणियं पारेइ / चउवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / बारसम करेइ, करेत्ता सब्बकामगुणियं पारेइ / छन्वीस इमं करे इ, करेत्ता सब्वकामगुणियं पारे / दसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / अदावीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / अट्टम करेइ, करेता सव्वकामगुणियं पारेइ / तीसइमं करेइ, करेत्ता सब्बकामगुणियं पारेइ / छठें करेद, करेता सबकामगणिय पारेइ / बत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / च उत्थं करेइ, करेत्ता सम्वकामणियं पारेइ / चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे / ग्रहछट्ठाई करेइ, करेत्ता सम्बकामणियं पारेइ / चोत्तीस छट्ठाई करेइ, करेत्ता सब्वकामगुणियं पारेइ / ग्रम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सबकामगुणियं पारे / छठें करेइ, करेता सब्वकामगुणियं पारे / बत्तीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे / चउत्थं करेइ, करेता सव्व कामगुणियं पारे। तीसइम करेइ, करेता सव्व कामगुणियं पारे / अट्टम करेद, करेता सब्वकामगृणिय पारेइ / अदावीस इमं करेड, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे / करेइ, करेता सब्वकामणियं पारेइ। छब्बीसइमं करेइ, करेत्ता सम्बकाम गुणियं पारे / चउत्थं करेइ, करेत्ता सम्वकामगुणियं पारेइ / चउवीस इमं करेइ, करेत्ता सब्वकामगुणिय पारेइ / अदछट्ठाई करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / बावीसइमं करेइ, करेत्ता सब्बकामगुणियं पारे / अट्टम करेइ, करेत्ता सन्वकामगुणियं पारे / वीसइमं करेइ, करेत्ता सबकामगुणियं पारेइ / छट्ठे करेंइ, करता सम्वकामगुणियं पारे / अद्वारसमं करेइ, करेत्ता सञ्बकामगुणियं पारेद / चउत्थं करेइ, करेत्ता सम्वकामगृणिय पारेइ / एवं खलु एसा रयणाबलीए तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी एगेणं संवच्छरेण तिहि माहि बावीसाए य अहोरत्तेहि अहासुत्तं जाव (महाअत्थं, अहातच्चं, अहामगं, अहाकप्पं, सम्म काएणं फासिया, पालिया, सोहिया, तीरिया, किट्रिया) बाराहिया भवइ / ___ - - अन्तकृद्दशासूत्र 147, 148 1. तए शं मुकाली अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव प्रज्जचंदणा अज्जा जाव (तेणेव उवागया, उवागच्छिता एवं वयासी) इच्छामि णं अज्जायो ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणी कणगावली-तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं वितरित्ताए / एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं-तिसु ठाणेसु अट्टमाई करेइ, जहि रपणावलीए छट्ठाई। एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता / चउण्हं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा / सेसं तहेव / -अन्तकृदृशा सूत्र, पृष्ठ 154 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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