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________________ [5 पूर्णभद्र चैत्य] देवयं, चेइयं, विणएणं पज्जुवासणिज्जे, दिवे, सच्चे, सच्चोवाए, सणिहियपाडिहेरे, जागसहस्सभाग. पडिच्छए बहुजणो अच्चेइ आगम्म पुण्णभद्दचेइयं पुण्णभद्दचेइयं / / २-उस चम्पा नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा भाग में-ईशान कोण में पूर्णभद्र नामक चैत्य--यक्षायतन था / वह चिरकाल से चला आ रहा था। पूर्व पुरुष–अतीत में हुए मनुष्य उसकी प्राचीनता की चर्चा करते रहते थे। वह सुप्रसिद्ध था। वह वित्तिक-वित्तयुक्त-चढ़ावा, भेंट आदि के रूप में प्राप्त सम्पत्ति से युक्त था अथवा वृत्तिक–आश्रित लोगों को उसकी ओर से आर्थिक वृत्ति दी जाती थी। वह कीर्तित-लोगों द्वारा प्रशंसित था, न्यायशील था--लौकिक श्रद्धायुक्त पुरुष यहाँ प्राकर न्याय प्राप्त करते थे अथवा वह ज्ञात-- अपने प्रभाव आदि के कारण विख्यात था। वह छत्र, ध्वजा, घण्टा तथा पताका युक्त था। वह छोटी और बड़ी झण्डियों से सजा था। सफाई के लिए वहाँ रोममय पिच्छियाँ रक्खी थीं। वेदिकाएँ बनी हुई थीं वहाँ की भूमि गोबर आदि से लिपी थी। उसकी दीवारें खड़िया, कलई आदि से पुती थीं। उसकी दीवारों पर गोलोचन तथा सरस-आद्र लाल चन्दन के, पाँचों अंगुलियों और हथेली सहित, हाथ की छापें लगी थीं। वहाँ चन्दन-कलशचन्दन से चचित मंगल-घट रक्खे थे। उसका प्रत्येक द्वार-भाग चन्दन-कलशों और तोरणों से सजा था। जमीन से ऊपर तक के भाग को छूती हुई बड़ी-बड़ो, गोल तथा लम्बी अनेक पुष्पमालाएँ वहाँ लटकती थीं। पाँचों रंगों के सरस-ताजे फूलों के ढेर के ढेर वहाँ चढ़ाये हुए थे, जिनसे वह बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था। काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ का वातावरण बड़ा मनोज्ञ था, उत्कृष्ट सौरभमय था। सुगन्धित धुएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बन रहे थे। वह चैत्य नट-नाटक दिखानेवाले, नर्तक-नाचनेवाले, जल्ल-कलाबाज-रस्सी प्रादि पर चढ़कर कला दिखानेवाले, मल्ल-पहलवान, मौष्टिक-मुक्केबाज, विडम्बक-विदूषक-मसखरे, प्लवक-उछलने या नदी आदि में तैरने का प्रदर्शन करनेवाले, कथक-कथा कहने वाले, लासकवीर रस की गाथाएँ या रास गानेवाले, लंख-बाँस के सिरे पर खेल दिखानेवाले, मंख-चित्रपट दिखाकर आजीविका चलानेवाले, तूण इल्ल-तूण नामक तन्तुवाद्य बजाकर आजीविका चलानेवाले, तुम्बवोणिक-तुम्ब-वीणा या पूगी बजानेवाले, भोजक-भक्ति प्रधान गीत गायक तथा मागधभाट आदि यशोगायक जनों से युक्त था / अनेकानेक नागरिकों तथा जनपदवासियों में उसकी कीति फैली थी। बहुत से दानशील, उदार पुरुषों के लिए वह पाहवनीय-आह्वान करने योग्य, प्राहवणीय-विशिष्ट विधि-विधान पूर्वक आह्वान करने योग्य, अर्चनीय-चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों से अर्चना करने योग्य, वन्दनीय-स्तुति आदि द्वारा वन्दना करने योग्य, नमस्करणीय-प्रणमन, पूर्वक नमस्कार करने योग्य, पूजनीय-पुष्प आदि द्वारा पूजा करने योग्य, सत्करणीय-वस्त्र आदि द्वारा सत्कार करने योग्य, सम्माननीय-मन से सम्मान देने योग्य, कल्याण मय-कल्याण-अर्थ, प्रयोजन या कामना पूर्ण करने वाला, मंगलमय--अनर्थप्रतिहारक-अवाञ्छित स्थितियाँ मिटानेवाला, दिव्य-दैवी शक्ति युक्त तथा विनयपूर्वक पर्युपासनीय-विशेष रूप से उपासना करने योग्य था / वह दिव्य, सत्य एवं सत्योपाय-अपने आराधकों की सेवा को सफल करने वाला था। वह अतिशय व अतीन्द्रिय प्रभाव युक्त था, हजारों प्रकार की पूजा-उपासना उसे प्राप्त होती थी। बहुत से लोग वहाँ आते और उस पूर्णभद्र चैत्य की अर्चना-पूजा करते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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