________________ और जमीन पर सोते थे / 10 ये प्राचार-शास्त्र और दर्शन-शास्त्र पर विचार, चर्चा करने के लिए भारत के विविध अंचलों में परिभ्रमण करते थे। वे षडंगों के ज्ञाता होते थे। उन परिवाजकों में कितने ही परिव्राजकों का परिचय इस प्रकार है 38. संखा-सांख्य मत के अनुयायी। 39. जोई-योगी, जो अनुष्ठान पर बल देते थे। 40. कपिल—निरीश्वरवादी सांख्या, जो ईश्वर को सृष्टिकर्ता नहीं मानते थे। 41. भिउच्च-भृगु ऋषि के अनुयायी। 42. हंस-जो पर्वत की गुफाओं में, रास्तों में, आश्रमों में, देवकुलों और आरामों में रह कर केवल भिक्षा के लिए गांव में प्रवेश करते थे / षड्दर्शनसमुच्चय और रिलीजन्स प्रॉव दी हिन्दूज' 12 में भी इनका उल्लेख आया है। 43. परमहंस जो सरिता के तट पर या सरिता के संगम-प्रदेशों में रहते और जीवन की सांध्य वेला में चीर, कोपीन, कुश प्रादि का परित्याग कर प्राणों का विसर्जन करते थे। 44. बहुउदय-जो गांव में एक रात्रि और नगर में पांच रात रहते हों। 45. कुडिव्वय-जो घर में रहते हों तथा क्रोध, लोभ और मोह रहित होकर अहंकार आदि का परित्याग करने में प्रयत्नशील हों। 46. कनपरिब्वायग-कृष्ण परिव्राजक अर्थात नारायण के परम भक्त / ब्राह्मण परिवाजक 47. कण्ड अथवा कण्ण / 46. करकण्डु 49. अम्बर-ऋषिभासित, थेरीगाथा'१३ और महाभारत'१४ में भी अम्बड परिव्राजकों के सम्बन्ध में उल्लेख है। 50. परासर-सूत्रकृतांग 14 में परासर को शीत, उदक और बीज रहित फलों आदि के उपभोग से सिद्ध माना गया है। उत्तराध्ययन११६ की टीका में द्वीपायन परिव्राजक की कथा है। उसका पूर्व नाम परासर था। 110. (क) वशिष्ठ धर्मसूत्र-१०-६।११. (ख) डिक्सनरी ऑव पाली प्रोपर नेम्स, जिल्द 2, पृ. 159. मलालसेकर (ग) महाभारत-१२।१९०१३. 111. षड्दर्शनसमुच्चय पृ. 112. रिलीजन्स ऑव दी हिन्दूज, जिल्द-१, पृ. 231. -लेखक एच. एच. विल्सन 113. थेरी गाथा-११६. 114. महाभारत-१२११४१३५. 115. सूत्रकृतांग-३।४।२।३, पृ. 94-95. 116. उत्तराध्ययन टीका-२, पृ. 39. [ 33 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org