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________________ भावना व्यक्त होती है। लगता है, ये दोनों प्रकार के प्रसंग कुछ अति मात्रा को लिये हुए हैं। उनमें तटस्थता का प्रभाव सा है। सारांश यह है, अजातशत्रु कुणिक के अन्तर्मानस पर उसकी माता चेलना के संस्कारों का असर था। चेलना के प्रति उसके मानस में गहरी निष्ठा थी। चेलना ने ही कणिक को यह बताया था कि तेरे पिता राजा श्रेणिक का तेरे प्रति कितना स्नेह था? उन्होंने तेरे लिए कितने कष्ट सहन किये थे! आवश्यकचूणि,४५ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र 6 प्रभति जैन ग्रन्थों में उसका अपर नाम 'अशोकचन्द्र' भी मिलता है चेलना भगवान महावीर के प्रति अत्यन्त निष्ठवान थी / चेलना के पूज्य पिता राजा 'चेटक' महावीर के परम उपासक थे।४७ इसलिए अजातशत्रु कणिक जैन था। यह पूर्ण रूप से स्पष्ट है। कुणिक की रानियों में पद्मावती,८ धारिणी और सुभद्रा प्रमुख थीं। आवश्यकचूर्णि५१ में आठ कन्याओं के साथ उसके विवाह का वर्णन है पर वहां आठों कन्याओं के नाम नहीं हैं। महारानी पद्मावती का पुत्र उदायी था, वह मगध के राजसिंहासन पर आसीन हुआ था। उसने चम्पा से अपनी राजधानी हटा कर पाटलीपुत्र में स्थापित की थी।५२ भगवान् महावीर जैन इतिहास में भगवान महावीर के भक्त अनेक सम्राटों का उल्लेख है, जो महावीर के प्रति अनन्य श्रद्धा रखते थे। पाठ राजाओं ने तो महावीर के पास आहती दीक्षा भी स्वीकार की थी। किन्तु कणिक एक ऐसा सम्राट् था, जो प्रतिदिन महाबीर के समाचार प्राप्त करता था और उसके लिए उसने एक पृथक व्यवस्था कर रखी थी। दूसरे सम्राटों में यह विशेषता नहीं थी / इन सभी से यह सिद्ध है कि राजा कणिक की महावीर के प्रति अपूर्व भक्ति थी। . भगवान् महावीर अपने शिष्य-समुदाय के साथ चम्पा नगरी में पधारते हैं। उनके तेजस्वी शिष्यं कितने ही प्रारक्षक-दल के अधिकारी थे तो कितने ही राजा के मंत्री-मण्डल के सदस्य थे, कितने ही राजा के परामर्श-मण्डल के सदस्य थे। सैनिक थे, सेनापति थे। यह वर्णन यह सिद्ध करता है कि बुभुक्षु नहीं किन्तु मुमुक्षु श्रमण बनता है। जिस साधक में जितनी अधिक वैराग्य भावना सुदढ होती है, वह उतना ही साधना के पथ पर आगे बढ़ता है। "नारि मुई घर सम्पति नासी, मूड मुडाय भये संन्यासी" यह कथन प्रस्तुत आगम को पढ़ने से खण्डित होता है। महावीर के शासन में ऐरे-गेरे व्यक्तियों की भीड़ नहीं थी पर ऐसे तेजस्वी और वर्चस्वी व्यक्तियों का साम्राज्य था, जो स्वयं साधना के सच्चे पथिक थे। वे ज्ञानी भी थे, ध्यानी भी थे, लब्धिधारी भी थे और विविध शक्तियों के धनी भी थे। —निरयावली, सूत्र-८. 44. अवदानतक-५४ 45. आवश्यकचूणि उत्तरार्ध 46. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र 47. आवश्यकचूणि उत्तरार्द्ध पत्र-१६४ 48. तस्स णं कूणियस्स रण्णो पउमावई नाम देवी होत्था / 49. उववाई सूत्र 12. 50. औपपातिक सूत्र-५५. 51. कुणियस्स अट्ठहिं रायवरकन्नाहिं समं विवाहो कतो। 52. आवश्यक चूर्णि-पत्र-१७७. [23] -प्राव. चूणि उत्त. पत्र-१६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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