________________ [औपपातिकसूत्र काश्यपगोत्रीय स्थविर पार्यरोहण से उद्देह-गण निकला। हारीतगोत्रीय स्थविर श्रीगुप्त से चारणगण निकला। भारद्वाजगोत्रीय स्थविर भद्रयश से उद्दवाइय-गण निकला। कु डिलगोत्रीय स्थविर काद्धि से वेसवाडिय (विस्सवाइय) गण निकला। वशिष्ठगोत्रीय काकन्दीय स्थविर ऋषिगुप्त से मानव-गण निकला। कोटिककाकन्दीय व्याघ्रापत्यगोत्रीय स्थविर सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध से कोटिक गण निकला।'' भगवान् महावीर के नौ गणों में सातवें का नाम कामद्धिक (कामढिय) था। उसे छोड़ देने पर अवशेष नाम ज्यों के त्यों हैं। थोड़ा बहुत कहीं कहीं वर्णात्मक भेद दिखाई देता है, वह केवल भाषात्मक है। अपने समय की जीवित-जन-प्रचलित भाषा होने के कारण प्राकृत की ये सामान्य प्रवृत्तियाँ हैं। प्रश्न उपस्थित होता है, भगवान महावीर के गणों का गोदासगण, बलिस्सहगण आदि के रूप में जो नामकरण हुआ, उसका आधार क्या था? यदि व्यक्तिविशेष के नाम के आधार पर गणों के नाम होते तो क्या यह उचित नहीं होता कि उन-उन गणों के व्यवस्थापकों-गणधरों के नाम पर वैसा होता? गणस्थित किन्हीं विशिष्ट साधुनों के नामों के आधार पर ये नाम दिये जाते तो उन विशिष्ट साधुओं के नाम आगम-वाङमय में, जिसका ग्रथन गणधरों द्वारा हुमा, अवश्य मिलते। पर ऐसा नहीं है। समझ में नहीं पाता, फिर ऐसा क्यों हुआ। विद्वानों के लिए यह चिन्तन का विषय है। ऐसी भी सम्भावना हो सकती है कि उत्तरवर्ती समय में भिन्न-भिन्न श्रमण-स्थविरों के नाम से जो पाठ समुदाय या गण चले, उन (गणों) के नाम भगवान् महावीर के गणों के साथ भी जोड़ दिये गये हों। एक गण जो बाकी रहता है, उसका नामकरण स्यात् प्रार्य सुहस्ती के बारह अंतेवासियों में से चौथे कामिढि (कार्माद्ध) नामक श्रमण-श्रेष्ठ के नाम पर कर दिया गया हो, जो अपने समय के सुविख्यात आचार्य थे, जिनसे वेसवाडिय (विस्सवाइय) नामक गण निकला था। .--. - 1. थेरेहितो णं गोदासे हितो कासवगोहितो गोदासगणं नामं गणं निग्गए। थेरेहितो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्थ णं उत्तरबलिस्सहगणं नाम गणं निग्गए / थेरेहितो शं अज्जरोहणे हितो कासवगोत्तेहितो तत्थ गं उद्देहगणं नामं गणं निग्गए / थेरेहितोणं सिरिगुत्तेहितो हारिय गोत्तेहितो एत्थ णं चारणगणं नामं गणं निग्गए। थेरेहिंतो भद्दजसे हितो भारदायगोत्तेहितो एस्थ णं उडुवाडियगणं निग्गए। थेरेहितो कामिडिढहितो कुडिलसगोत्तहितो एत्थ णं वेसवाडियगणं नामं गणं निग्गए / थेरेहितो णं इसिगुत्तेहितो णं काकंदरहिंतो वासिट्ठसगोत्तेहितो तत्थ पं माणवगणं नाम गणं निग्गए / थेरेहितो णं सुदिठ्य-सुपडिबुद्ध हितो कोडियकाकंदएहितो बग्घावच्चसगोतेहितो एत्थ ण कोडियगणं नाम गणं निग्गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org