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________________ 174] [औपपातिकसूत्र १५७-जीवाणं भंते ! सिझमाणा कयरंमि संठाणे सिझति ? गोयमा ! छण्हं संठाणाणं अण्णयरे संठाणे सिझति / १५७-भगवन् ! सिद्ध होते हुए जीव किस संस्थान (दैहिक आकार) में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! छह संस्थानों में से किसी भी संस्थान में सिद्ध हो सकते हैं। 158 जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरंमि उच्चत्ते सिझंति ? गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरयणीए, उक्कोसेणं पंचधणुसइए सिझंति / १५८-भगवन् ! सिद्ध होते हुए जीव कितनी अवगाहना-ऊँचाई में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! जघन्य कम से कम सात हाथ तथा उत्कृष्ट अधिक से अधिक पांच सौ धनुष की अवगाहना में सिद्ध होते हैं। _ विवेचन - सिद्ध होने वाले जीवों की प्रस्तुत सूत्र में जो अवगाहना प्ररूपित की गई है, वह तीर्थकरों की अपेक्षा से समझना चाहिए। भगवान् महावीर जघन्य सात हाथ की और भ. ऋषभ उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की अवगाहना से सिद्ध हुए। सामान्य केवलियों की अपेक्षा यह कथन नहीं है। क्योंकि कूर्मापुत्र दो हाथ की अवगाहना से सिद्ध हुए। मरुदेवी की अवगाहना पांच सौ धनुष से अधिक थी। १५९-जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि पाउए सिज्झति ? गोयमा ! जहण्णेणं साइरेगट्ठवासाउए, उक्कोसेणं पुब्धकोडियाउए सिझति / 159- भगवन् ! सिद्ध होते हुए जीव कितने प्रायुष्य में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! कम से कम आठ वर्ष से कुछ अधिक आयुष्य में तथा अधिक से अधिक करोड़ पूर्व के आयुष्य में सिद्ध होते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि आठ वर्ष या उससे कम की आयु वाले और क्रोड पूर्व से अधिक की आयु के जीव सिद्ध नहीं होते हैं / सिद्धों का परिवास १६०–अस्थि णं भंते ! इमोसे रयणप्पहाए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इणठे समठे, एवं जाव अहे सत्तमाए। १६०-भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी-प्रथम नारक भूमि के नीचे सिद्ध निवास करते हैं ? नहीं, ऐसा अर्थ-अभिप्राय---ठोक नहीं है। रत्नप्रभा के साथ-साथ शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूम्रप्रभा, तमःप्रभा तथा तमस्तमःप्रभा-पहली से सातवीं तक सभी नारकभूमियों के सम्बन्ध में ऐसा ही समझना चाहिए अर्थात उनके नीचे सिद्ध निवास नहीं करते / 1.-1. समचतुरस्र, 2, न्यानोधपरिमण्डल, 3. सादि, 4. वामन, 5. कुब्ज, 6. हुंड / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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