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________________ केवली-समुद्घात का हेतु] [167 १३६-एक अत्यधिक ऋद्धिमान्, द्युतिमान्, अत्यन्त बलवान्, महायशस्वी, परम सुखी, बहुत प्रभावशाली देव चन्दन, केसर प्रादि विलेपनोचित सुगन्धित द्रव्य से परिपूर्ण डिब्बा लेता है, लेकर उसे खोलता है, खोलकर-उस सुगन्धित द्रव्य को सर्वत्र बिखेरता हुआ तीन चुटकी बजाने जितने समय में समस्त जम्बूद्वीप की इक्कीस परिक्रमाएँ कर तुरन्त पा जाता है / 137 से पूर्ण गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीबे दोबे तेहि घाणपोग्गलेहि फुडे ? हंता फुडे / १३७-क्या समस्त जम्बूद्वीप उन घ्राण-पुद्गलों-गन्ध-परमाणुओं से स्पृष्ट-व्याप्त होता है ? हाँ, भगवन् ! होता है। १३८-छउमत्थे गं गोयमा ! मणुस्से तेसि घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णणं वणं जाव' जाणइ, पास? भगवं ! णो इणढे समठे। १३८-गौतम ! क्या छद्मस्थ मनुष्य घ्राण-पुद्गलों को वर्ण रूप से वर्ण आदि को जरा भी जान पाता है ? देख पाता है ? भगवन् ! ऐसा संभव नहीं है / १३९–से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मणुस्से तेसि णिज्जरापोग्गलाणं णो किंचि वणेणं वणं जाव जाणइ, पासइ / १३९---गौतम ! इस अभिप्राय से यह कहा जाता है कि छद्मस्थ मनुष्य उन खिरे हुए पुद्गलों के वर्णरूप से वर्ण आदि को जरा भी नहीं जानता, नहीं देखता। १४०–सुहमा गं ते पोग्गला पण्णता, समणाउसो! सबलोयं पिय गं ते फुसित्ता णं चिट्ठति / १४०--आयुष्मान् श्रमण ! वे पुद्गल इतने सूक्ष्म कहे गये हैं। वे समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित रहते हैं। केवली समुद्घात का हेतु १४१-कम्हा णं भंते ! केवली समोहणंति ? कम्हा णं केवली समुग्घायं गच्छति ? 1. 'जाव इणामेवेत्तिकद त्ति यावदिति परिमाणार्थस्तावदित्यस्य गम्यमानस्य सच्यपेक्ष:, "इणामेव' त्ति इदं गमनम, एवमिति चप्पुटिकारूपशीघ्रत्वावेदकहस्तव्यापारोपदर्शनपरः, अनुस्वाराश्रयणं च प्राकृतत्वात्, द्विवचनं च शीघ्रतातिशयोपदर्शनपरम्, इति रूपप्रदर्शनार्थः / --औपपातिक सूत्र वृत्ति, पत्र 109 2. देखें सूत्र-संख्या 133 3. देखें सूत्र-संख्या 133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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