________________ 90] .. [ोपपातिकसूत्र चन्द्र, सूर्य आदि अनेक प्रकार की मोहरों की मालाएँ, कानों में रत्नों के कुण्डल, बालियां, बाहुओं में त्रुटिक-तोड़े, बाजूबन्द, कलाइयों में मानिक-जड़े कंकण, अंगुलियों में अंगूठियाँ, कमर में सोने की करधनियाँ, पैरों में सुन्दर नूपुर-पैजनियाँ, घुघरूयुक्त पायजेबें तथा सोने के कड़ले आदि बहुत प्रकार के गहने सुशोभित थे। वे पचरंगे, बहुमूल्य, नासिका से निकलते नि:श्वास मात्र से जो उड़ जाए-ऐसे अत्यन्त हलके, मनोहर, सुकोमल, स्वर्णमय तारों से मंडित किनारों वाले, स्फटिक-तुल्य प्राभायुक्त वस्त्र धारण किये हुए थीं। उन्होंने बर्फ, गोदुग्ध, मोतियों के हार एवं जल-कण सदश स्वच्छ, उज्ज्वल, सुकुमारमुलायम, रमणीय, सुन्दर बुने हुए रेशमी दुपट्टे प्रोढ़ रखे थे। वे सब ऋतुओं में खिलनेवाले सुरभित पुष्पों की उत्तम मालाएँ धारण किये हुए थीं। चन्दन, केसर आदि सुगन्धमय पदार्थों से निर्मित देहरञ्जन-अंगराग से उनके शरीर रञ्जित एवं सुवासित थे, श्रेष्ठ धूप द्वारा धूपित थे। उनके मुख चन्द्र जैसी कान्ति लिये हुए थे / उनकी दीप्ति बिजली की द्युति और सूरज के तेज सदृश थी / उनकी गति, हँसी, बोली, नयनों के हावभाव, पारस्परिक पालाप-संलाप इत्यादि सभी कार्य-कलाप नैपुण्य और लालित्ययुक्त थे। वे सुन्दर स्तन, जघन-कमर से नीचे का भाग, मुख, हाथ, पैर, नयन, लावण्य, रूप, यौवन और नेत्र चेष्टाओं-भ्रभंगिमानों से युक्त थीं। उनका संस्पर्श शिरीष पुष्प और नवनीत-- मक्खन जैसा मुदल तथा कोमल था। बे निष्कलष, निर्मल, सौम्य, कमनीय, प्रियदर्शन--देखने में प्रिय या सुभग तथा सुरूप थीं। वे भगवान के दर्शन की उत्कण्ठा से हर्षित-रोमांचित थीं। उनमें वे सब विशेषताएँ थीं, जो देवताओं में होती हैं। जन-समुदाय द्वारा भगवान् का वन्दन ___३८-तए गं चंपाए गयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा, बहुजणसद्दे इ वा, जगवाए इवा, जणुल्लावे इ वा, जणवहे इ वा, जणबोले इवा, जणकलकले इ वा, जणुम्मीइ वा, जणुक्कलिया इ वा, जणसण्णिवाए इ था, बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे प्राइगरे, तित्थगरे, सयंसंबुद्धे, पुरिसुत्तमे जाव' संपाविउकामे पुवाणुपुटिव चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे इहमागए, इहसंपत्ते, इह समोसढे, इहेव चंपाए णयरीए बाहि पुण्णभद्दे चेइए प्रहापडिरूवं उग्गहं उम्गिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरई। तं महाफलं खलु भो देवाणपिया ! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसणपडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुपिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो, गमंसामो, सक्कारेमो सम्माणेमो, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं [विणएणं] पज्जुवासामो, एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेयसाए, आणुगामियत्ताए भविस्सइत्ति कटु बहवे उग्गा, उम्गपुत्ता, भोगा, भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं राइण्णा, (इक्खागा, नाया, कोरब्वा) खत्तिया, माहणा, भडा, जोहा, पसत्थारो, मल्लई, लेच्छई, लेच्छईपुत्ता, अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोड बिय-इन्भसेटि-सेणावइ-सस्थवाहप्पभितयो अपेगइया बंदणवत्तियं, अप्पेगइया पूयणवत्तियं, एवं सकारवत्तियं, सम्मागवत्तियं, सणवत्तियं, कोऊहलवत्तियं, अप्पेगइया अविणिच्छयहे प्रस्सुयाइं सुणेस्सामो, सुयाई 1. सूत्र संख्या 20 में आये हुए भगवान महावीर के सभी विशेषण प्रथमाविभक्ति एकवचनान्त कर यहां लगाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org