________________ वैमानिक देवों का आगमन] [89 सविन्यास युक्त मस्तकों पर विद्यमान थे। कुडलों की उज्ज्वल दीप्ति से उनके मुख उद्योतित थे। मुकुटों से उनके मस्तक दीप्त-दीप्तिमान् थे। वे लाल आभा लिये हुए, पद्मगर्भ सदृश गौर कान्तिमय, श्वेत वर्णयुक्त थे। शुभ वर्ण, गन्ध, स्पर्श ग्रादि के निष्पादन में उत्तम वैक्रियलब्धि के धारक थे / वे तरह-तरह के वस्त्र, सुगन्धित द्रव्य तथा मालाएं धारण किये हुए थे। वे परम ऋद्धिशाली एवं परम शुतिमान् थे / वे हाथ जोड़ कर भगवान् की पर्युपासना करने लगे। विवेचन-भगवान् महावीर के दर्शन, वन्दन हेतु देवों के साथ-साथ अप्सराओं या देवियों के आगमन का भी अन्यत्र वर्णन प्राप्त होता है। टीकाकार प्राचार्य अभयदेवसूरि ने टीका में संक्षेप में उसे उद्धृत किया है / वह संक्षिप्त पाठ और उसका सारांश इस प्रकार है तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स बहवे अच्छरगणसंघाया अंति पाउसमविस्था। तानो णं प्रच्छरानो धंतधोयकणगरुप्रगसरिसप्पभाम्रो समहक्कता य बालभावं अणइवर. सोम्मचारुरूवा निरुवयसरसजोवणकक्कसतरुणवयभावमुवगयानो निच्चमवट्टियसहावा सव्वंगसुंदरीमो इच्छियनेवत्थरइयरमणिज्जगहियवेसा, कि ते ? हारहारपाउत्तरयणकुडलवासुत्तगहेमजाल-मणि जाल - कणगजालसुभगरितियकडगखुड्डुगएगावलिकंठसुत्तमगहगधरच्छगेवेज्जसोणियसुत्तगतिलग * फुल्लगसिद्धस्थियकग्णवालियससिसूर उसभचक्कयतलभंगयतुडियहत्थमालयहरिसकेऊरवलयपालंबपलंबअंगुलिज्जगवलक्खदीणारमालिया चंदसूरमालियाकंचिमेहलकलावपयरगपरिहेरगपायजाल घंटियाखिखिणिरयणोरुजालखुड्डियवरनेउरचलणमालिया कणगणिगलजालगमगरमुहविरायमाणनेऊरपलिय. सहालभूसणधरीमो, दसवण्णरागरइयरत्तमगहरा हयलालापेलवाइरेगे धवले कणगखचियंतकम्मे प्रागासफालियसरिसप्पहे अंसुए नियत्थानो, प्रायरेणं तुसारगोक्खीरहारदगरयपंडुरदुगुल्लसुकुमालसुकयरमणिज्न उत्तरिज्जाई, पाउयानो,...." सव्वोउयसुरभिकुसुमसुरइयविचित्तवरमल्लधारिणीयो सुगंधिचुण्णंगरागवरवासपुष्फपूरगविराइया उत्तमवरधूवविया सिरिसमाणवेसा दिव्वकुसुममल्लदामपन्भंजलिपुडाम्रो चंदविलासिणोमो, चंद समनिलाडा....."विज्जघणमिरीइसूरदिपंततेप्रत्रहियतरसंनिकासासो, सिंगारागारचारवेसाओ, संगयगयहसियभणियचेट्टियविलास सललियसलावनिउणजुत्तोवयारकुसलामो, सुदरथणजहणवयणकरचरणनयणलावण्णरूवजोव्वणविलासकलियासो सुरबहूओ सिरीसनवणीयमउयसुकुमालतुल्लफासामो, ववगयकलिकलुसधोयनिद्धंतरयमलामो, सोमानो कंतानो पियदसणाश्रो जिणभत्तिदंसणाणुरागणं हरिसियानो प्रोवइया याविजिणसगासं.... / / उस समय भगवान् महावीर के समीप अनेक समूहों में अप्सराएँ. देवियाँ उपस्थित हुई। उनकी दैहिक कान्ति अग्नि में तपाये गये, जल से स्वच्छ किये गये स्वर्ण जैसी थी। वे बाल-भाव को अतिक्रान्त कर---बचपन को लांघकर यौवन में पदार्पण कर चुकी थीं-नवयौवना थीं। उनका रूप अनुपम, सुन्दर एवं सौम्य था। उनके स्तन, नितम्ब, मुख, हाथ, पैर तथा नेत्र लावण्य एवं यौवन से विलसित, उल्लसित थे / दूसरे शब्दों में उनके अंग-अंग में सौन्दर्य-छटा लहराती थी। वे निरुपहत-रोग आदि से अबाधित, सरस-शृगाररस-सिक्त तारुण्य से विभूषित थीं। उनका वह रूप, सौन्दर्य, यौवन सुस्थित था, जरा--वृद्धावस्था से विमुक्त था / वे देवियां सुरम्य वेशभूषा, वस्त्र, आभरण आदि से सुसज्जित थीं। उनके ललाट पर पुष्प जैसी प्राकृति में निर्मित आभूषण, उनके गले में सरसों जैसे स्वर्ण-कणों तथा मणियों से बनी कंठियाँ, कण्ठसूत्र, कंठले, अठारह लड़ियों के हार, नौ लड़ियों के अर्द्धहार, बहुविध मणियों से बनी मालाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org