________________ स्वाध्याय-ध्यान स्वाध्याय क्या है-वह कितने प्रकार का है ? स्वाध्याय पाँच प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार है१. वाचना-यथाविधि, यथासमय श्रुत-वाङ्मय का अध्ययन, अध्यापन / 2. प्रतिपृच्छना-अधीत विषय में विशेष स्पष्टीकरण हेतु पूछना, शंका-समाधान करना / 3. परिवर्तना-अधीत ज्ञान को पुनरावृत्ति, सीखे हुए को बार-बार दुहराना। 4. अनुप्रेक्षा-प्रागमानुसारी चिन्तन-मनन करना। 5. धर्मकथा-श्रुत-धर्म की व्याख्या-विवेचना करना / यह स्वाध्याय का स्वरूप है। ध्यान क्या है-उसके कितने भेद हैं ? ध्यान एकाग्र चिन्तन के चार भेद हैं-१. प्रार्तध्यान---रागादि भावना से अनुप्रेरित ध्यान, 2. रोद्रध्यान-हिंसादि भावना से अनुरंजित ध्यान, 3. धर्मध्यान-धर्मभावना से अनुप्राणित ध्यान, 4. शुक्लध्यान' -निर्मल, शुभ-अशुभ से प्रतीत आत्मोन्मुख शुद्ध ध्यान / प्रार्तध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है-- 1. मन को प्रिय नहीं लगनेवाले विषय, स्थितियाँ पाने पर उनके वियोग--दूर होने, दूर करने के सम्बन्ध में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना / 2. मन को प्रिय लगनेवाले विषयों के प्राप्त होने पर उनके अवियोग-वे अपने से कभी दूर न हों, सदा अपने साथ रहें, यो निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना / 3. रोग हो जाने पर उनके मिटने के सम्बन्ध में निरन्तर प्राकुलतापूर्ण चिन्तन करना / 4. पूर्व-सेवित काम-भोग प्राप्त होने पर, फिर कभी उनका वियोग न हो, यों निरन्तर प्राकुलतापूर्ण चिन्तन करना / प्रार्तध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं / वे इस प्रकार हैं१. क्रन्दनता-जोर से क्रन्दन करना-रोना-चीखना / 2. शोचनता-मानसिक ग्लानि तथा दैन्य अनुभव करना / 3. तेपनता--प्रासू ढलकाना / 4. विलपनता-विलाप करना--"हाय ! मैंने पूर्व जन्म में कितना बड़ा पाप किया, जिसका यह फल मिल रहा है / " इत्यादि रूप में बिलखना। 1. शुचं--शोकं क्लभयति---अपनयतीति शुक्लम् ---जो जन्म-मरण रूप शोक का अपनयन-क्षय करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org