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________________ द्वितीय अध्ययन] से गं तसो प्रणंतरं उम्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववन्जिहिइ / से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियमोगेसु मुच्छिए, गिद्ध, गढिए, अझोववन्ने, जाए जाए वाणरपेल्लए वहेइ / तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेब जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे इन्दपुरे नयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिह / तए णं तं दारयं अम्मापियरो जायमेत्तकं वद्ध हिन्ति, नपुंसगकम्मं सिक्खाबेहिति / तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्ज करेहिति, तं जहा-'होउ णं अम्हं इमें दारए पियसेणे नामं नपुसए।' तएणं से पियसेणे नपुसए उम्मुक्कबालभावे जोवणगमणुष्पत्ते विन्नयपरिणयमेत्ते रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णण य उक्किट्ठ उक्किट्ठसरीरे भविस्सइ / तएणं से पियसेणे नसए इन्दपुरे नयरे वहवे राईसर-जाव (तलवर-माइंबिय-कोडुबिय-इब्भसेटि-सेणावइ-) पभिइयो बहूहि य विज्जापयोगेहि य मंतचुण्णेहि य हियउड्डावणाहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य ाभियोगिएहि य अभियोगिता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरिस्सइ। 23-- गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-हे प्रभो ! यह उज्झितक कुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जायगा? और कहाँ उत्पन्न होगा ? भगवान्-गौतम ! उज्झितक कुमार 25 वर्ष की पूर्ण आयु को भोगकर आज ही त्रिभागावशेष दिन में (दिन के चौथे प्रहर में) शूली द्वारा भेद को प्राप्त होकर कालमास में काल करके-मर कर रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारक रूप में उत्पन्न होगा। वहां से निकलकर सीधा इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष के वैताढय पर्वत के पादमूल-तलहटी (पहाड़ के नीचे की भूमि में) वानर कुल में वानर के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ पर बालभाव को त्यागकर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ वह पशु सम्बन्धी भोगों में मूच्छित, गृद्ध-ग्रथित भोगों के स्नेहपाश में जकड़ा हुआ और भोगों ही में मन को लगाए रखने वाला होगा / वह उत्पन्न हुए वानरशिशुओं का अवहनन (घात) किया करेगा। ऐसे कुकर्म में तल्लीन हुआ वह काल-मास में काल करके इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत इन्द्रपुर नामक नगर में गणिका के घर में पुत्र रूप में उत्पन्न होगा। माता-पिता उत्पन्न होते ही उस बालक को वद्धितक (नपुसक) बना देंगे और नपुसक के कार्य सिखलाएंगे / बारह दिन के व्यतीत हो जाने पर उसके माता-पिता उसका 'प्रियसेन' यह नामकरण करेंगे / बाल्यभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त तथा विज्ञ-विशेष ज्ञान वाला, एवं बुद्धि प्रादि की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करने वाला वह प्रियसेन नपुसक रूप, यौवन व लावण्य के द्वारा उत्कृष्ट-उत्तम और उत्कृष्ट शरीर वाला होगा। तदनन्तर वह प्रियसेन नपुंसक इन्द्रपुर नगर के राजा, ईश्वर यावत अन्य मनुष्यों को अनेक प्रकार के प्रयोगों से, मन्त्रों से मन्त्रित चूर्ण, भस्म आदि से, हृदय को शून्य कर देने वाले, अदृश्य कर देने वाले, वश में करने वाले, प्रसन्न कर देने वाले और पराधीन कर देने वाले प्रयोगों से वशीभूत करके मनुष्य सम्बन्धी उदार भोगों को भोगता हुअा समययापन करेगा। __२४--तए णं से पियसेणे नसए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्म समज्जिणित्ता एकवीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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