________________ हम पूर्व में बता चुके हैं कि मूर्त मादक द्रव्यों का असर अमूर्त ज्ञान पर होता है वैसे ही विकारी अमूर्त आत्मा पर मूर्त कम -पुद्गलों का प्रभाव होता है / कर्म कौन बाँधता है ? अकर्म के कर्म का बंधन नहीं होता। जो जीव पहले से ही कर्मों से बंधा है वही जीव नये कर्मों को बाँधता है।८ मोहकर्म का उदय होने पर जीव राग-द्वेष में परिणत होता है और वह अशुभ कर्मों का बंध करता है।५३ मोहरहित जो वीतराग जीव हैं वे योग के कारण शुभ कर्म का बंधन करते हैं / 60 नूतन बंधन का कारण पहले का बंधन नहीं हो तो मुक्त जीव हैं, जिनके कर्म बँधे हुए नहीं हैं वे भी कर्म से बिना बंधे नहीं रह सकते। इस दष्टि से यह पूर्ण सत्य है कि बंधा हा ही बंधता है, अबंधा हुअा नहीं बंधता है। गौतम-भगवन् ! दुःखी जीव दुःख से स्पष्ट होता है या अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ? भगवन्---गौतम ! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता। दुःख का स्पर्श पर्यादान (ग्रहण) उदीरणा वेदना और निर्जरा दुःखी जीव करता है, अदुःखो जीव नहीं करता।६१ गौतम ने पूछा-भगवन् ! कर्म कौन बाँधता है ? संयत, असंयत अथवा संयतासंयत ? भगवान् ने कहा-गौतम! असंयत, संयतासंयत और संयत ये सभी कर्म बांधते हैं / तात्पर्य यह है कि जो सकर्म आत्मा है वे ही कर्म बाँधती हैं उन्हीं पर कर्म का प्रभाव होता है। कर्म बंध के कारण जीव के साथ कर्म का अनादि सम्बन्ध है किन्तु कर्म किन कारणों से बंधते हैं, यह एक सहज जिज्ञासा है / गौतम ने प्रश्न किया-भगवन् ! जीव कर्मबंध कैसे करता है ? भगवान् ने उत्तर दिया-गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म के तीव्र उदय से, दर्शनावरणीय कर्म का तीव्र उदय होता है। दर्शनावरणीय कर्म के तीव्र उदय से दर्शनमोह का उदय होता है / दर्शनमोह के तीव्र उदय से मिथ्यात्व का उदय होता है और मिथ्यात्व के उदय से जीव आठ प्रकार के कर्मों को बांधता है।६२ 58. प्रज्ञापना २३॥श२९२ 59. भगवती 9 60. भगवती 9 61. भगवती 715266 62. प्रज्ञापना 23111289 [25] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org