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________________ द्वितीय अध्ययन भद्रनन्दी १--विइयस्स उक्खेवो। १-द्वितीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत् समझ लेनी चाहिये / २-तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे। थूभकरंडगउज्जाणं। धन्नो जक्खो / धणावहो राया। सरस्सई देवी। सुमिणदंसणं, कहणं, जम्म, बालत्तणं, कलाप्रो य / जोव्वणं पाणिग्गहणं दामो पासाय भोगा य। जहा सुबाहुस्स। नवरं भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवी पामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं / सामिस्स समोसरणं / सावगधम्मं / पुत्वभवपुच्छा / महाविदेहे वासे पुडरोकिणी नयरी। विजए कुमारे / जुगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए / मणुस्साउए निबद्ध / इहं उम्पन्न / सेसं जहा सुबाहुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिणिवाहिइ, सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ / निक्लेवो। २-जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया कि श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? उत्तर में सुधर्मा स्वामी कहते हैं, हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में ऋषभपुर नाम का एक नगर था। वहाँ स्तुपकरण्डक नामक उद्यान था। धन्य नामक यक्ष का यक्षायतन था / वहाँ धनावह नाम का राजा राज्य करता था। उसकी सरस्वती देवी नाम की रानी थी। महारानी का स्वप्न-दर्शन, पति से स्वप्न-वृत्तान्तकथन, समय आने पर बालक का जन्म, बालक का बाल्यावस्था में कलाएं सीखकर यौवन को प्राप्त होना, तदनन्तर विवाह होना, माता-पिता के द्वारा दहेज देना और ऊँचे प्रासादों में अभीष्ट भोगोपभोगों का उपभोग करना, आदि सभी वर्णन सुबाहुकुमार ही की तरह जानना चाहिये। उसमें अन्तर केवल इतना है कि सुबाहुकुमार के बदले बालक का नाम 'भद्रनन्दी' था / उसका श्रीदेवी प्रमुख पाँच सौ देवियों के साथ (श्रेष्ठ राज्यकन्याओं के साथ) विवाह हुा / तदनन्तर महावीर स्वामी का पदार्पण हा, भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अंगीकार किया। गौतम स्वामी द्वारा उसके पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न करने पर भगवान् ने इस प्रकार उत्तर दिया महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी नाम की नगरी में विजय नामक कुमार था। उसके द्वारा भी युगबाहु तीर्थंकर को प्रतिलाभित करना-दान देना, उससे मनुष्य आयुष्य का बन्ध होना, यहाँ भद्रनन्दी के रूप में जन्म लेना, यह सब सुबाहुकुमार ही की तरह जान लेना चाहिये / यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा, निर्वाण पद को प्राप्त करेगा व सर्व दुःखों का अन्त करेगा / निक्षेप की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिये / / द्वितीय अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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