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________________ तृतीय अध्ययन सुजातकुमार १-तच्चस्स उक्खयो। १-तृतीय अध्ययन की प्रस्तावना भी यथापूर्व जान लेनी चाहिये / २-वीरपुरं नयरं। मणोरमं उज्जाणं / वीरकण्हमित्ते राया। सिरीदेवी। सुजाए कुमारे / बलसिरीपामोक्खाणं पंचसयकन्नगाणं पाणिग्गहणं / सामीसमोसरणं / पुवभवपुच्छा। उसुयारे नथरे / उसभदत्ते गाहावई। पुफ्फदत्ते अणगारे पडिलाभिए। माणुस्साउए निबद्ध / इह उप्पन्न जाव महाविदेहवासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिणिवाहिइ, सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। निक्खेवो। २–श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा-हे जम्बू ! वीरपुर नामक नगर था। वहाँ मनोरम नामका उद्यान था / महाराज वीरकृष्णमित्र राज्य करते थे। श्रीदेवी नामक उनकी रानी थी। सुजात नाम का कुमार था / बलश्रो प्रमुख 500 श्रेष्ठ राज-कन्याओं के साथ सुजातकुमार का पाणिग्रहणसंस्कार हुआ / श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। सुजातकुमार ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया / श्री गौतम स्वामी ने पूर्वभव की जिज्ञासा प्रकट की। श्रमण भगवान् महावीर ने इस तरह पूर्वभव का वृत्तान्त कहा-- __ इषुकासार नामक नगर था / वहाँ ऋषभदत्त गाथापति रहता था। उसने पुष्पदत्त अनगार को निर्दोष आहार दान दिया, फलतः शुभ मनुष्य प्रायुष्य का बन्ध हुआ। आयु पूर्ण होने पर यहाँ सुजातकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ यावत् महाविदेह क्षेत्र में चारित्र ग्रहण कर सिद्ध पद को प्राप्त करेगा। विवेचन-दूसरे अध्ययन की तरह तीसरे अध्ययन का भी सारा वर्णन प्रथम अध्ययन के ही समान है। केवल नाम व स्थान मात्र का भेद है। अतः सारा वर्णन सुबाहुमार की ही तरह समझ लेना चाहिये। निक्षेप की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये / // तृतीय अध्ययन समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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