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________________ / विपाकसूत्र-प्रथम श्रु तस्कन्ध माणे, कन्दमाणे, विलवमाणे सयाणीयस्स रन्नो महया इडि-सक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूहि लोइयाई मयकिच्चाई करेइ / तए णं ते बहवे राईसर जाव सत्थवाहा उदायणं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति / / तए णं से उदायणकुमारे राया जाए महया हिमवंत! ह-तदनन्तर किसी समय राजा शतानीक कालधर्म को प्राप्त हो गया। तब उदयनकुमार बहुत से राजा, तलवर, माडंबिक, कौटुबिक, इभ्य, श्रेष्ठी सेनापति और सार्थवाह आदि के साथ रोता हुअा, आक्रन्दन करता हुआ तथा विलाप करता हुआ शतानीक नरेश का राजकीय समृद्धि के अनुसार सन्मानपूर्वक नीहरण तथा मृतक सम्बन्धी सम्पूर्ण लौकिक कृत्यों को करता है। तदनन्तर उन राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि ने मिलकर बड़े समारोह के साथ उदयन कुमार का राज्याभिषेक किया। उदयनकुमार हिमालय पर्वत के समान महान् राजा हो गया / १०-तए णं से बहस्सइदत्ते दारए उदायणस्स रन्नो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु, सव्वभूमियासु, अंतेउरे य दिन्नवियारे जाए यावि होस्था / तए णं से बहस्सइदत्ते पुरोहिए उदायणस्स रन्नो अंतेउरंसि वेलासु य अवेलासुय, काले य अकाले य, रापो य वियाले य पविसमाणे अन्नया कयाइ पउमावईए देवीए सद्धि संपलग्गे यावि होत्था। पउमावईए देवीए सद्धि उरालाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ। १०-तदनन्तर बृहस्पतिदत्त कुमार उदयन नरेश का पुरोहित हो गया और पौरोहित्य कर्म करता हुआ सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी इच्छानुसार बेरोक-टोक गमनागमन करने लगा। तत्पश्चात् वह बृहस्पतिदत्त पुरोहित उदयन-नरेश के अन्तःपुर में समय-समय, काल-अकाल तथा रात्रि एवं सन्ध्याकाल में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश करते हुए धीरे धीरे पद्मावती देवी के साथ अनुचित सम्बन्ध वाला होगया। तदनुसार पद्मावती देवी के साथ उदार यथेष्ट मनुष्य सम्बन्धी काम-भोगों को सेवन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। ११-इमं च णं उदायणे राया पहाए जाव विभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावइए देवीए सद्धि उरालाई भोगभोगाइं भुजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते तिवलियं भिडि पिडाले साहट्ट बहस्सइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहि गिण्हावेइ जाव (गिण्हावेत्ता अद्वि-मुट्ठि-जाणु-कोप्परपहार-संभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेता अवनोडय-बंधणं करेइ, करेत्ता) एएणं विहाणेणं वझं प्राणवेइ। एवं खलु गोयमा ! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पुराणाणं जाव विहरइ / ११-इधर किसी समय उदयन नरेश स्नानादि से निवृत्त होकर और समस्त अलङ्कारों से अलंकृत होकर जहाँ पद्मावती देवी थी वहाँ आया / पाकर उसने बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पद्मावती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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