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________________ पञ्चम अध्ययन : बृहस्पतिदत्त ] देवी के साथ भोगोपभोग भोगते हुए देखा। देखते ही वह क्रोध से तमतमा उठा / मस्तक पर तीन बल वाली भृकुटि चढ़ाकर बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पुरुषों द्वारा पकड़वाकर यष्टि (अस्थि), मुट्ठी, घुटने, कोहनी, आदि के प्रहारों से उसके शरीर को भग्न कर दिया गया, मथ डाला और फिर इस प्रकार (जैसा कि तुमने राजमार्ग में देखा है ) ऐसा कठोर दण्ड देने की राजपुरुषों को आज्ञा दी।। _हे गौतम ! इस तरह बृहस्पतिदत्त पुरोहित पूर्वकृत क्रूर पापकर्मों के फल को प्रत्यक्षरूप से अनुभव कर रहा है। भविष्य १२–'बहस्सइदत्ते णं भंते ! दारए इनो कालगए समाणे कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा ! बहस्सइदत्ते णं दारए पुरोहिए चउट्टि वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलिय-भिन्ने कए समाणे कालमासे काल किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिति / संसारो जहा पढमे जाव वाउ-तेउप्राउ-पुढवीसु। तमो हत्थिणाउरे नयरे मिगत्ताए पच्चायाइस्सइ / से णं तत्थ बाउरिएहि वहिए समाणे तत्थेव हथिणाउरे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ, बोहि, सोहम्मे कम्पे, महाविवेहे वासे सिज्झिहिइ। निक्खेवो। १२–गौतम स्वामी ने प्रश्न किया, हे भगवन् ! बृहस्पतिदत्त पुरोहित यहाँ से काल करके कहाँ जायेगा? और कहाँ पर उत्पन्न होगा? भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! बृहस्पतिदत्त पुरोहित 64 वर्ष की आयु को भोगकर दिन का तीसरा भाग शेष रहने पर सूली से भेदन किया जाकर कालावसर में काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्कृष्ट एक सागर की स्थिति वाले नारकों में उत्पन्न होगा। वहाँ से निकलकर प्रथम अध्ययन में वणित मृगापुत्र की तरह सभी नरकों में, सब तिर्यञ्चों में तथा एकेन्द्रियों में लाखों लाखों बार जन्म-मरण करेगा। तत्पश्चात् हस्तिनापुर नगर में मृग के रूप में जन्म लेगा। वहाँ पर वागुरिकों-जाल में फँसाने का काम करने वाले व्याधों के द्वारा मारा जाएगा। और इसी हस्तिनापुर में श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से जन्म धारण करेगा! वहाँ सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा और काल करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा / वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहाँ पर अनगार वृत्ति धारण कर, संयम की आराधना करके सब कर्मों का अन्त करेगा-परमसिद्धि को प्राप्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् जान लेना चाहिए। // पञ्चम अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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