________________ पञ्चम अध्ययन : बृहस्पति दत्त ] निकलवा लेता था और बाहर निकलवाकर जितशत्रु राजा के निमित्त उनसे शान्ति-होम किया करता था। इसके अतिरिक्त वह पुरोहित अष्टमी और चतुर्दशी के दिन दो-दो बालकों के, चार-चार में चार-चार के, छह मास में आठ-आठ बालकों के और संवत्सर-वर्ष में सोलह-सोलह बालकों के हृदयों के मांसपिण्डों से शान्तिहोम किया करता था। जब-जब जितशत्रु राजा का किसी शत्रु के साथ युद्ध होता तब-तब वह महेश्वरदत्त पुरोहित एक सौ आठ (108) ब्राह्मण बालकों, एक सौ आठ क्षत्रियबालकों, एक सौ आठ वैश्यबालकों और एक सौ पाठ शूद्रबालकों को अपने पुरुषों द्वारा पकड़वाकर और जीते जी उनके हृदय के मांसपिण्डों को निकलवाकर जितशत्रु नरेश की विजय के निमित्त शान्तिहोम करता था / उसके प्रभाव से जितशत्रु राजा शीघ्र ही शत्रु का विध्वंस कर देता या उसे भगा देता था। ७-तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे काल किच्चा पंचमीए पुढवीए उक्कोसेण सत्तरससागरोवमट्टिइए नरगे उववन्ने / ७-इस प्रकार के क्रूर कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, क्रूरकर्मों में प्रधान, नाना प्रकार के पापकर्मों को एकत्रित कर अन्तिम समय में वह महेश्वरदत्त पुरोहित तीन हजार वर्ष का परम आयुष्य भोगकर पांचवें नरक में उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की स्थिति वाले नारक के रूप में उत्पन्न हुमा / वर्तमान भव -से णं तमो अणंतरं उबट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तताए उववन्ने / तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निबत्तबारसाहस्स इम एयारूवं नामधेज्ज करेंति-'जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते, वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए वहस्सइदत्ते नाम णं / ' तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाइपरिम्गहिए जाव परिवड्डइ / तए णं से वहस्सइदत्ते उम्मक्कबालभावे जोवणगमणुप्पत्ते विन्नयपरिणयमेते होत्था / से णं उदायणस्स कुमारस्स पियबालवयस्सए यावि होत्था / सहजायए, सहड्डियए, सहपंसुकोलियए। ८-तदनन्तर महेश्वरदत्त पुरोहित का वह पापिष्ठ जीव उस पांचवें नरक से निकलकर सीधा इसी कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हा। तत्पश्चात उत्पन्न हए उस बालक के माता-पिता ने जन्म से बारहवें दिन नामकरण संस्कार करते हए कहा-यह बालक सोमदत्त का पूत्र और वसूदत्ता का पात्मज होने के कारण इसका बृहस्पतिदत्त यह नाम रक्खा जाए। तदनन्तर वह बृहस्पतिदत्त बालक पांच धायमाताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त करता हुआ तथा बालभाव को पार करके युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, परिपक्व विज्ञान को उपलब्ध किये हुए वह उदयन कुमार का बाल्यकाल से ही प्रिय मित्र हो गया। कारण यह था कि ये दोनों एक साथ ही उत्पन्न हुए, एक साथ बढ़े और एक साथ ही दोनों ने धूलि-क्रीडा की थी अर्थात् खेले थे। -तए णं से सयाणीए राया अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते / तए णं से उदायणं कुमारे बहूहि राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठी-सेणावइ-सस्थवाहप्पभिइहि सद्धि संपरिवुडे रोय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org