________________ तृतीय अध्ययन : अभग्नसेन ] २२-तदनन्तर उस अभग्नसेन सेनापति ने अपने गुप्तचरों की बातों को सुनकर तथा विचारकर अपने पांच सौ चोरों को बुलाकर इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो ! पुरिमताल नगर के महाबल राजा ने आज्ञा दी है कि यावत् दण्डनायक ने चोरपल्ली पर आक्रमण करने का तथा मुझे जीवित पकड़ने को यहाँ आने का निश्चय कर लिया है. अतः उस दण्डनायक को सालाटवी चोरपल्ली पहुँचने से पहिले ही मार्ग में रोक देना हमारे लिये योग्य है। __अभग्नसेन सेनापति के इस परामर्श को 'तथेति' (बहुत ठीक, ऐसा ही होना चाहिए) ऐसा कहकर पांच सौ चोरों ने स्वीकार किया। २३--तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता पंचहि चोरसह सद्धि बहाए जाव पायच्छित्ते भोयणमंडवंसि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च 5 आसाएमाणे 4 विहरइ / जिमियभुत्तुतारागए वि य णं समाणे प्रायंते चोक्खे परमसूइभए पंचहि चोरसएहि सद्धि अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरुहिता सन्नद्धबद्ध जाव पहरणेहि मगइएहिं जाव रवेणं पुवावरण्हकालसमयंसि सालाडवीप्रो चोरपल्लोओ णिग्गच्छह, णिग्गच्छित्ता विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणे तं दंडं पडिवालेमाणे चिट्ठइ / २३–तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति ने अशन, पान, खादिम और स्वादिम–अनेक प्रकार की स्वादिष्ट भोजनसामग्री तैयार कराई तथा पांच सौ चोरों के साथ स्नानादि क्रिया कर दुःस्वप्नादि के फलों को निष्फल करने के लिये मस्तक पर तिलक तथा अन्य माङ्गलिक कृत्य करके भोजनशाला में उस विपुल प्रशनादि वस्तुओं तथा पांच प्रकार की मदिराओं का यथारुचि पास्वादन, विस्वादन आदि किया। भोजन के पश्चात् योग्य स्थान पर आचमन किया, मुख के लेपादि को दूर कर परम शुद्ध होकर पांच सौ चोरों के साथ आर्द्रचर्म पर आरोहण किया। तदनन्तर दृढ़बन्धनों से बंधे हुए, लोहमय कसूलक प्रादि से युक्त कवच को धारण करके यावत् आयुधों और प्रहरणों से सुसज्जित होकर हाथों में ढालें बांधकर यावत् महान् उत्कृष्ट, सिंहनाद आदि शब्दों के द्वारा समुद्र के समान गर्जन करते हुए एवं आकाशमण्डल को शब्दायमान करते हुए अभग्नसेन ने सालाटवी चोरपल्ली से मध्याह्न के समय प्रस्थान किया। खाद्य पदार्थों को साथ लेकर विषम और दुर्ग-गहन वन में ठहरकर वह दण्डनायक की प्रतीक्षा करने लगा। विवेचन--आर्द्रचर्म पर आरोहण करने का क्या प्रयोजन है ? ऐसा प्रश्न उठने पर इसके समाधान के सम्बन्ध में तीन मान्यताएँ हैं--- प्राचार्य श्री अभयदेव सूरि के मन्तव्यानुसार-'आर्द्र चर्मारोहति मांगल्यार्थमिति' आद्रचर्म का आरोहण करना चोरों का अपना मांगलिक अनुष्ठान था / कारण 'विघ्नध्वंसकामो मंगलमाचरेत्' इस उक्ति के अनुसार अभग्नसेन और उसके साथियों ने दण्डनायक के बल को मार्ग में रोकने में पा सकने वाले संभावित विघ्नों के विनाश की कामना से प्रस्थान से पूर्व यह मंगल-अनुष्ठान किया। __ दूसरी मान्यता परम्परा का अनुसरण करने वाली है। तदनुसार आर्द्रचर्म पर आरोहित होने का परमार्थ यह है कि अनुकूल-प्रतिकूल कैसी भी परिस्थिति में पांव पीछे नहीं हटेगा। 'कार्य वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्' अर्थात् हर प्रयत्ल से कार्य को सिद्ध करके ही विराम लुगा, अन्यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org