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________________ 50 ] [ विपाकसूत्र--प्रथम श्रुतस्कन्ध तए णं से दंडे 'तह ति एयम पडिसुणेइ / तए णं से दंडे बहूहि पुरिसेहिं सन्नद्धबद्धवम्मियकवहिं जाव गहियाउह-पहरणेहि सद्धि संपरिवुडे मगइएहि फलएहि जाव छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया जाव उक्किट्ठ जाव करेमाणे पुरिमतालं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सालाडवो चोरपल्ली तेगेव पहारेत्थ गमणाए / २०–महाबल नरेश उन जनपदवासियों के पास से उक्त वृत्तान्त को सुनकर रुष्ट, कुपित और क्रोध से तमतमा उठे। उसके अनुरूप क्रोध से दांत पीसते हुए भोंहें चढ़ाकर अर्थात् क्रोध की साक्षात् प्रतिमा बनकर कोतवाल को बुलाते हैं और बुलाकर कहते हैं-देवानुप्रिय ! तुम जानो और शालाटवी नामक चोरपल्ली को लूट लो-नष्ट-भ्रष्ट कर दो और उसके चोरसेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो! महाबल राजा की इस आज्ञा को दण्डनायक विनयपूर्वक स्वीकार करता हुआ, दृढ़ बंधनों से बंधे हुए लोहमय कुसूलक आदि से युक्त कवच को धारण कर आयुधों और प्रहरणों से लैस अनेक पुरुषों को साथ में लेकर, हाथों में फलक-ढाल बांधे हुए यावत् क्षिप्रतूर्य के बजाने से महान् उत्कृष्ट महाध्वनि एवं सिंहनाद आदि के द्वारा समुद्र की सी गर्जना करते हुए, आकाश को विदीर्ण करते हुए पुरिम ताल नगर के मध्य से निकल कर शालाटवी चोरपल्ली की ओर जाने का निश्चय करता है। २१.-तए णं तस्स भग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लद्धदा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली, जेणेव प्रभम्गसेणे चोरसेणावई, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव परिग्गहियं मत्थए अंजलि कटु एवं क्यासी–एवं खलु देवाणुपिया ! पुरिमताले नयरे महाबलेण रण्णा महाभडचडगरेणं दण्डे प्राणत्ते-'गच्छह णं तुब्भे, देवाणुप्पिया ! सालाडवि चोरपल्लि विलुपाहि, अभग्गसेणं चोरसेणावई जोवरगाहं गेहाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि / ' तए णं से दंडे महया भडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेस्थ गमणाए / २१-तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति के गुप्तचरों को इस वृत्तान्त का पता लगा। वे सालाटवी चोरपल्ली में, जहां अभग्नसेन चोरसेनापति था, आये और दोनों हाथ जोड़कर और मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके अभग्नसेन से इस प्रकार बोले-हे देवानुप्रिय ! पुरिमतालनगर में महाबल राजा ने महान् सुभटों के समुदायों के साथ दण्डनायक-कोतवाल को बुलाकर प्राज्ञा दी है कि----'तुम लोग शीघ्र जाओ, जाकर सालाटवी चोरपल्ली को नष्ट-भ्रष्ट कर दो लट लो और उसके सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़ लो और पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो।' राजा की आज्ञा को शिरोधार्य करके कोतवाल योद्धाओं के समूह के साथ सालाटवी चोरपल्ली में आने के लिये रवाना हो चुका है। २२-तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसिं चारपुरिसाणं अंतिए एयम सोच्चा णिसम्म पंचचोरसयाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी----‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महाबले जाव तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं तं दंडं सालाडवि चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव पडिसेहित्तए।' तए णं ताई पंचचोरसयाई प्रभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स 'तह' ति जाव पडिसुणेति / Jain Education International For Private &Personal.Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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