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________________ 52 ] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रु तस्कन्ध देह का उत्सर्ग कर दूगा / इस प्रतिज्ञा से प्राबद्ध होने का दृढ़तम संकल्प पार्द्र चमं पर ग्रारोहित होने से प्रतीत होता है। ___ तीसरी मान्यता यह है कि जिस तरह आर्द्रचर्म फैलता है, वृद्धि को प्राप्त होता है, उसी प्रकार इस पर प्रारोहण करने वाला भी धन-जनादि परम समृद्धि के वृद्धि रूप प्रसार को उपलब्ध करता है। इसी महत्वाकांक्षा रूप भावना को सन्मुख रखते हुए अभग्नसेन और उसके पाँच सौ साथियों ने प्रार्द्रचर्म पर प्रारोहण किया। २४-तए णं से दंडे जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छिता प्रभग्गसणणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गे यावि होत्था। तए णं अभग्गसेणे चोर सेणावई तं दण्डं खिप्पामेव यमहिय जाव (पवरवीर-घाइय विवडियचिध-धय-पडाग दिसोदिसि) पडिसेहेइ / २४–उसके बाद वह कोतवाल जहाँ अभग्नसेन चोरसेनापति था, वहाँ पर आता है, और आकर अभग्नसेन चोरसेनापति के साथ युद्ध में संप्रवृत्त हो जाता है। तदनन्तर, अभग्नसेन चोर सेनापति ने उस दण्डनायक को शीघ्र ही हतमथित कर दिया अर्थात् उस कोतवाल की सेना का हनन किया, वोरों का घात किया, ध्वजा पताका को नष्ट कर दिया, दण्डनायक का भी मानमर्दन कर उसे और उसके साथियों को इधर उधर भगा दिया। २५–तए णं से दण्डे प्रभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा हय० जाव पडिसेहिए समाणे अथामे प्रबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्ट जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महाबले राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-जाव एवं वयासी–एवं खलु, सामी! अभग्गसेणे चोरसेणावई विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए / नो खलु से सक्का केणइ सुबहुएणावि पासबलेण वा हस्थिबलेण वा रहबलेण वा चाउरंगेण वि उरं उरेण गिहित्तए।' ताहे सामेण य भएण य उवप्पयायेण विस्संभमाणेउं पयत्ते यावि होत्था। जे वि से अभितरगा सीसगभमा, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं च विउलेण, धण-कणग-रयण-संतसारसावएज्जेणं भिन्दइ, अभागसेणस्स य चोरसेणावइस्स अभिक्खणं अभिक्खणं महत्थाई महग्घाई महरिहाई पाहुडाई पेसेइ, प्रभग्गसेणं चोरसेणावई वीसंभमाणेइ। २५-~-तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति के द्वारा हत-मथित यावत् प्रतिषेधित होने से तेजोहीन, बलहीन, वीर्यहीन तथा पुरुषार्थ और पराक्रम से हीन हुअा वह दण्डनायक शत्रुसेना को परास्त करना अशक्य जानकर पुनः पुरिमतालनगर में महाबल नरेश के पास आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दसों नखों की अञ्जलि कर इस प्रकार कहने लगा प्रभो! चोरसेनापति अभग्नसेन ऊँचे, नीचे और दुर्ग-गहन वन में पर्याप्त खाद्य तथा पेय सामग्री के साथ अवस्थित है / अतः बहुत अश्वबल, गजबल, योद्धाबल और रथबल, कहाँ तक कहूँचतुरङ्गिणी सेना के साक्षात् बल से भी वह जीते जी पकड़ा नहीं जा सकता है ! दण्डनायक के ऐसा कहने पर महाबल राजा सामनीति. भेदनीति व उपप्रदान नीति–दान नीति से उसे विश्वास में लाने के लिये प्रवृत्त हुा / तदर्थ वह उसके (चोरसेनापति के) शिष्यभ्रम-शिष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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