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________________ तियंचयोनि के दुःख ] [41 प्राक्रमण करते हैं / मयूर सर्प को मार डालता है। इस प्रकार अनेक तिर्यंचों में जन्मजात वैरभाव होता है / नारक जीव नरक से निकल कर दुःखमय तिर्यंचयोनि में जन्म लेते हैं / वहाँ उन्हें विविध प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं। तियंचयोनि के दुःख ३४-कि ते ? सीउण्ह-तण्हा- खुह-वेयण-अप्पईकार- अडवि- जम्मणणिच्च- भउविग्गवास- जग्गण-बह-बंधणताडण-अंकण - णिवायण- अद्विभंजण-णासाभेय-प्पहारदूमण- छविच्छेयण-अभिप्रोग-पावण-कसंकुसारणिवाय-दमणाणि-वाहणाणि य / ३४---प्रश्न-वे तिर्यंचयोनि के दुःख कौन-से हैं ? उत्तर-शीत-सर्दी, उष्ण-गर्मी, तषा-प्यास, क्षुधा-भूख, वेदना का अप्रतीकार, अटवी-जंगल में जन्म लेना, निरन्तर भय से घबड़ाते रहना, जागरण, वध-मारपीट सहना, बन्धन-बांधा जाना, ताड़न, दागना--लोहे की शलाका, चीमटा आदि को गर्म करके निशान बनाना-डामना, गड़हे आदि में गिराना, हड्डियाँ तोड़ देना, नाक छेदना, चाबुक, लकड़ी आदि के प्रहार सहन करना, संताप सहना, छविच्छेदन-अंगोपांगों को काट देना, जबर्दस्ती भारवहन आदि कामों में लगना, कोड़ा-चाबुक, अंकुश एवं पार-डंडे के अग्र भाग में लगी हुई नोकदार कील आदि से दमन किया जाना, भार वहन करना आदि-आदि / विवेचन-शास्त्रकार पूर्व ही उल्लेख कर चुके है कि तिर्यंचगति के कष्ट जगत् में प्रकट हैं, प्रत्यक्ष देखे-जाने जा सकते हैं। प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित दुःख प्रायः इसी कोटि के हैं / ये दुःख पंचेन्द्रिय तिर्यंचों सम्बन्धी हैं। तिर्यंचों में कोई पंचेन्द्रिय होते हैं, कोई चार, तीन, दो या एक इन्द्रिय वाले होते है। चतुरिन्द्रिय आदि के दुःखों का वर्णन प्रागे किया जाएगा। ___मनुष्य सर्दी-गर्मी से अपना बचाव करने के लिए अनेकानेक उपायों का आश्रय लेते हैं / सर्दी से बचने के लिए अग्नि का, बिजली के चूल्हे आदि का, गर्म-ऊनी या मोटे वस्त्रों का, रुईदार रजाई आदि का, मकान प्रादि का उपयोग करते हैं। गर्मी से बचाव के लिए भी उनके पास अनेक साधन हैं और वातानुकूलित भवन आदि भी बनने लगे हैं / किन्तु पशु-पक्षियों के पास इनमें से कौनसे साधन हैं ? बेचारे विवश होकर सर्दी-गर्मी सहन करते हैं। भूख-प्यास की पीड़ा होने पर वे उसे असहाय होकर सहते हैं। अन्न-पानी मांग नहीं सकते / जब बैल बेकाम हो जाता है, गाय-भैंस दध नहीं देती. तब अनेक मनुष्य उन्हें घर से छठी दे देते हैं / वे गलियों में भूखे-प्यासे आवारा फिरते हैं / कभी-कभी पापी हिंसक उन्हें पकड़ कर कत्ल करके उनके मांस एवं अस्थियों को बेच देते हैं। कतिपय पालत पशुओं को छोड़ कर तिर्यंचों की वेदना का प्रतीकार करने वाला कोन है ! कौन जंगल में जाकर पशु-पक्षियों के रोगों को चिकित्सा करता है ! तियंचों में जो जन्म-जात वैर वाले हैं, उन्हें परस्पर एक-दूसरे से निरन्तर भय रहता है, शशक, हिरण आदि शिकारियों के भय से ग्रस्त रहते हैं और पक्षी व्याधों-वहेलियों के डर से घबराते हैं / इसी प्रकार प्रत्राण-प्रशरण एवं साधनहीन होने के कारण सभी पशु-पक्षी निरन्तर भयग्रस्त बने रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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