________________ 22] [प्रश्नण्याकरणसूत्र : अ. 1, अ. 1 15. भोजनादि पकाने, पकवाने, दीपक आदि जलाने तथा प्रकाश करने के लिए अग्निकाय के जीवों की हिंसा की जाती है। विवेचन--यहाँ भी वे सब निमित्त समझ लेने चाहिए, जिन-जिन से अग्निकाय के जीवों की विराधना होती है। वायुकाय की हिंसा के कारण १६-सुष्प-वियण-तालयंट-पेहुण-मुह-करयल-सागपत्त-वस्थमाईएहि अणिलं हिसंति / १६-सूर्प-सूप-धान्यादि फटक कर साफ करने का उपकरण, व्यजन-पंखा, तालवृन्तताड़ का पंखा, भयरपंख आदि से, मख से. हथेलियों से, सागवान आदि के पत्ते से तथा वस्त्र-खण्ड आदि से वायुकाय के जीवों की हिंसा की जाती है। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में जिन-जिन कारणों से वायुकाय की विराधना होती है, उन कारणों में से कतिपय कारणों का कथन किया गया है। शेष कारण स्वयं ही समझे जा सकते हैं / वनस्पतिकाय की हिंसा के कारण १७-अगार-परियार-भक्ख-भोयण-सयणासण-फलक-मूसल-उक्खल-तत - विततातोज्ज-वहणवाहण-मंडव-विविह-भवण-तोरण-विडंग- देवकुल-जालय द्धचंद-णिज्जहग- चंदसालिय-वेतिय-णिस्सेणिदोणि-चंगेरी-खील-मंडक - समा-पवावसह-गंध-मल्लाणुलेवर्ण-अंबर-जुयणंगल-मइय-फुलिय-संवण-सीयारह-सगड-जाण-जोग्ग-अट्टालग-चरिय-दार-गोउर-फलिहा-अंत-सूलिय-लउड-मुसंहि-सयग्धी-बहुपहरणावरणुवक्खराणकए, अहि य एवमाइएहिं बहूहि कारणसएहि हिसंति ते तरुगणे भणियाणिए य एवमाई। १७-~-प्रगार-गृह, परिचार-तलवार की म्यान आदि, भक्ष्य-मोदक आदि, भोजनरोटी वगैरह, शयन-शय्या आदि, आसन-विस्तर-बैठका आदि, फलक-पाट-पाटिया, मूसल, ओखली, तत-वीणा प्रादि, वितत–ढोल आदि, आतोद्य- अनेक प्रकार के वाद्य, वहन-नौका आदि, वाहन-रथ-गाड़ी आदि, मण्डप, अनेक प्रकार के भवन, तोरण, विडंग-विटंक, कपोतपालीकबूतरों के बैठने के स्थान, देवकुल-देवालय, जालक-झरोखा, अर्द्धचन्द्र-अर्धचन्द्र के आकार की खिड़की या सोपान, नि! हक द्वारशाखा, चन्द्रशाला-अटारी, वेदी, निःसरणी-नसैनी, द्रोणीछोटी नौका, चंगेरी-बड़ी नौका या फलों को डलिया, खूटा-खूटी, स्तंभ-खम्भा, सभागार, प्याऊ, आवसथ-आश्रम, मठ, गंध, माला, विलेपन, वस्त्र, युग---जूवा, लांगल-हल, मतिकजमीन जोतने के पश्चात् ढेला फोड़ने के लिए लम्बा काष्ठ-निर्मित उपकरणविशेष, जिससे भूमि समतल की जाती है, कुलिक-विशेष प्रकार का हल-बखर, स्यन्दन-युद्ध-रथ, शिविका-पालकी, रथ, शकट-छकड़ा गाड़ी, यान, युग्य-दो हाथ का वेदिकायुक्त यानविशेष, अट्टालिका, चरिकानगर और प्राकार के मध्य का पाठ हाथ का चौड़ा मार्ग, परिघद्वार, फाटक, पागल, अरहट आदि, शूली, लकुट-लकड़ी-लाठी, मुसुढी, शतघ्नी-तोप या महासिला जिससे सैकड़ों का हनन हो सके तथा अनेकानेक प्रकार के शस्त्र, ढक्कन एवं अन्य उपकरण बनाने के लिए और इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org