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________________ अपनी बात हमारे श्रमणसंघ के विद्वान् युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी महाराज जितने शान्त एवं गम्भीर प्रकृति के हैं, ज्ञान-गरिमा की दृष्टि से उतने ही स्फूर्त तथा क्रियाशील हैं। ज्ञान के प्रति अगाध प्रेम और उसके विस्तार की भावना आप में बड़ी तीव्र है। जब से आपश्री ने समस्त बत्तीस प्रागमों के हिन्दी अनुवाद-विवेचन युक्त आधुनिक शैली में प्रकाशन-योजना की घोषणा की है, विद्वानों तथा पागमपाठी ज्ञान-पिपासुग्रों में बड़ी उत्सूकता व प्रफलता की भावना बढ़ी है / यह एक ऐतिहासिक आवश्यकता भी थी। बहुत वर्षों पूर्व पूज्यपाद श्री अमोलकऋषिजी महाराज ने श्राममों के हिन्दी अनुवाद का जो भगीरथ कार्य सम्पन्न किया था, वह सम्पूर्ण स्थानकवासी जैन समाज के लिए एक गौरव का कार्य तो था ही, अत्यन्त आवश्यक व उपयोगी भी था। वर्तमान में उन आगमों की उपलब्धि भी कठिन हो गई और आगमपाठी जिज्ञासूत्रों को बड़ी कठिनाई का अनुभव हो रहा था। श्रद्धेय आचार्यसम्राट् श्री आनन्द ऋषिजी महाराज भी इस दिशा में चिन्तनशील थे और आपकी हार्दिक भावना थी कि आगमों का आधुनिक संस्करण विद्यार्थियों को सुलभ हो। युवाचार्यश्री * की साहसिक योजना ने आचार्यश्री की अन्तरंग भावना को सन्तोष ही नहीं किन्तु आनन्द प्रदान किया। आगम-सम्पादन-कार्य में अनेक श्रमण, श्रमणियों तथा विद्वानों का सहकार अपेक्षित है और यूवाचार्यश्री ने बड़ी उदारता के साथ सबका सहयोग प्रामंत्रित किया। इससे अनेक प्रतिभाओं को सक्रिय होने का अवसर व प्रोत्साहन मिला। मुझ जैसे नये विद्यार्थियों को भी अनुभव की देहरी पर चढ़ने का अवसर मिला। सिकन्द्राबाद वर्षावास में राजस्थानकेसरी श्री पुष्करमुनिजी, साहित्यवाचस्पति श्री देवेन्द्रमुनिजी आदि भी आचार्यश्री के साथ थे। श्री देवेन्द्रमुनिजी हमारे स्थानकवासी जैन समाज के सिद्धहस्त लेखक व अधिकारी विद्वान हैं। उन्होंने मुझे भी आगम-सम्पादन-कार्य में प्रेरित किया। उनकी बार-बार की प्रोत्साहनपूर्ण प्रेरणा से मैंने भी आगमसम्पादन-कार्य में सहयोगी बनने का संकल्प किया। परम श्रद्धय प्राचार्यश्री का मार्गदर्शन मिला और मैं इस पथ पर एक कदम बढ़ाकर भागे आया। फिर गति में कुछ मन्दता पा गई। आदरणीया विदुषी महासती प्रीतिसूधाजी ने मेरी मन्दता को तोड़ा, बल्कि कहना चाहिए झकझोरा, उन्होंने सिर्फ प्रेरणा व प्रोत्साहन ही नहीं, सहयोग भी दिया, बार-बार पूछते रहना, हर प्रकार का सहकार देना तथा अनेक प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां, टीकाएँ, टब्बा आदि उपलब्ध कराना, यह सब उन्हीं का काम था। यदि उनकी बलवती प्रेरणा व जीवन्त सहयोग न होता तो मैं शायद प्रश्नव्याकरणसूत्र का अनुवाद नहीं कर पाता। प्रश्नव्याकरणसूत्र अपनी शैली का एक अनूठा प्रागम है। अन्य भागमों में जहाँ वर्ण्यविषय की विविधता विहंगम गति से चली है, वहाँ इस आगम की वर्णनशैली पिपीलिकायोग-मार्ग की तरह पिपीलिकागति से क्रमबद्ध चली है। पांच प्राश्रवों तथा पांच संवरों का इतना सूक्ष्म, तलस्पर्शी, व्यापक और मानव-मनोविज्ञान को छूने वाला वर्णन संसार के किसी भी अन्य शास्त्र या ग्रन्थ में मिलना दुर्लभ है। शब्दशास्त्र का नियम है कि कोई भी दो शब्द एकार्थक नहीं होते। प्रत्येक शब्द, जो भले पर्यायवाची हों, एकार्थक प्रतीत होते हों, किन्तु उनका अर्थ, प्रयोजन, निष्पत्ति भिन्न होती है और वह स्वयं में कुछ न कुछ भिन्न [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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