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________________ 270] [प्रश्नण्याकरणसूत्र : कथाएँ से लंका की ओर चल दिया। सीता का विलाप और रुदन सुन कर रास्ते में जटायु पक्षी ने विमान को रोकने का भरसक प्रयत्न किया / लेकिन उसके पंख काटकर उसे नीचे गिरा दिया और सीता को लेकर झटपट लंका पहुँचा / वहाँ उसे अशोकवाटिका में रखा। रावण ने सीता को अनेक प्रलोभन देकर और भय बताकर अपने अनकल बनाने की भरसक चेष्टाएँ की. लेकिन सीता किस से उसके वश में न हुई। आखिर उसने विद्याप्रभाव से श्रीराम का कटा हुआ सिर भी बताया और कहा कि अब रामचन्द्र तो इस संसार में नहीं रहे, तू मुझे स्वीकार कर ले / लेकिन सीता ने उसकी एक न मानी / उसने श्रीराम के सिवाय अपने मन में और किसी पुरुष को स्थान न दिया। रावण को भी उसने अनुकूल-प्रतिकूल अनेक वचनों से उस अधर्मकृत्य से हटने के लिये समझाया, पर वह अपने हठ पर अड़ा रहा। उधर श्रीराम, लक्ष्मण के पास पहुँचे तो लक्ष्मण ने पूछा---'भाई ! आप माता सीता को पर्णकुटी में अकेली छोड़कर यहाँ कैसे पा गए ?' राम ने सिंहनाद को मायाजाल समझा और तत्काल अपनी पर्णकुटी में वापस लौटे / वहाँ देखा तो सीता गायब / सीता को न पाकर श्रीराम उसके वियोग से व्याकुल होकर मूच्छित हो गए, भूमि पर गिर पड़े। इतने में लक्ष्मण भी युद्ध में विजय पाकर वापिस लौटे तो अपने बड़े भैया की यह दशा और सीता का अपहरण जानकर अत्यन्त दुःखित हुए / लक्ष्मण के द्वारा शीतोपचार से राम होश में पाए / फिर दोनों भाई वहाँ से सीता की खोज में चल पड़े। मार्ग में उन्हें ऋष्यमक पर्वत पर वानरवंशी राजा सग्रीव और हनुमान आदि विद्याधर मिले / उनसे पता लगा कि 'इसी रास्ते से आकाशमार्ग से विमान द्वारा रावण सीता को हरण करके ले गया है। उसके मुख से 'हा राम' शब्द सुनाई दे रहा था इसलिए मालूम होता है, वह सीता ही होगी। अतः दोनों भाई निश्चय करके सुग्रीव, हनुमान आदि वानरवंशी तथा सीता के भाई भामंडल आदि विद्याधरों की सहायता से सेना लेकर लंका पहुँचे / युद्ध से व्यर्थ में जनसंहार न हो, इसलिये पहले श्री राम ने रावण के पास दूत भेज कर कहलाया कि सीता को हमें आदरपूर्वक सौंप दो और अपने अपराध के लिये क्षमायाचना करो तो हम बिता संग्राम किये वापस लौट जाएंगे, लेकिन रावण की मृत्यु निकट थी। उसे विभीषण, मन्दोदरी आदि हितैषियों ने भी बहुत समझाया, किन्तु उसने किसी की एक न मानी / आखिर युद्ध की दुन्दुभि बजी। घोर संग्राम हुमा / दोनों ओर के अगणित मनुष्य मौत के मेहमान बने / अधर्मी रावण के पक्ष के बड़े-बड़े योद्धा रण में खेत रहे। आखिर रावण रणक्षेत्र में आया। रावण तीन खण्ड का अधिनायक प्रतिनारायण था। उससे युद्ध करने की शक्ति राम और लक्ष्मण के सिवाय किसी में न थी। यद्यपि हनमान आदि की सेना में थे, तथापि रावण के सामने टिकने की और विजय पाने की ताकत नारायण के अतिरिक्त दूसरे में नहीं थी। अतः रावण के सामने जो भी योद्धा पाए, उन सबको वह परास्त करता रहा, उनमें से कई तो रणचंडो की भेंट भी चढ़ गए / रामचन्द्रजी की सेना में हाहाकार मच गया। राम ने लक्ष्मण को हो समर्थ जान कर रावण से युद्ध करने का आदेश दिया। दोनों ओर से शस्त्रप्रहार होने लगे / लक्ष्मण ने रावण के चलाये हुये सभी शस्त्रों को निष्फल करके उन्हें भूमि पर गिरा दिया। अन्त में क्रोधवश रावण ने अन्तिम अस्त्र के रूप में अपना चक्र लक्ष्मण पर चलाया, लेकिन वह लक्ष्मण की तीन प्रदक्षिणा देकर लक्ष्मण के ही दाहिने हाथ में जा कर ठहर गया। रावण हताश हो गया। ___अन्ततः लक्ष्मणजी ने वह चक्र संभाला और ज्यों ही उसे घुमाकर रावण पर चलाया, त्यों ही रावण का सिर कटकर भूमि पर आ गिरा। रावण यमलोक का अतिथि बन गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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