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________________ उस्लेष] [239 (3) शैक्ष का रात्निक के साथ बराबरी से चलना / (4) शैक्ष का रात्निक के आगे खड़ा होना। (5) शैक्ष का रात्निक के साथ बराबरी से खडा होता / (6) शैक्ष का रात्निक के अति निकट खड़ा होना। (7) शैक्ष का रात्निक साधु के आगे बैठना / (8) शैक्ष का रानिक के साथ बराबरी से बैठना / (6) शैक्ष का रात्निक के अति समीप बैठना। (10) शैक्ष, रात्निक के साथ स्थंडिलभूमि जाए और रात्निक से पहले ही शौच--- शुद्धि कर ले। (11) शैक्ष, रात्निक के साथ विचारभूमि या विहारभूमि जाए और रात्निक से पहले ही आलोचना कर ले। (12) कोई मनुष्य दर्शनादि के लिए आया हो और रालिक के बात करने से पहले ही शैक्ष द्वारा बात करना। (13) रात्रि में रात्निक के पुकारने पर जागता हुआ भी न बोले / (14) आहारादि लाकर पहले अन्य साधु के समक्ष आलोचना करे, बाद में रात्निक के समक्ष / (15) आहारादि लाकर पहले अन्य साधु को और बाद में रात्निक साधु को दिखलाना / (16) आहारादि के लिए पहले अन्य साधुनों को निमंत्रित करना और बाद में रत्नाधिक को। (17) रत्नाधिक से पूछे विना अन्य साधुओं को आहारादि देना / (18) रात्निक साधु के साथ आहार करते समय मनोज्ञ, सरस वस्तु अधिक एवं जल्दी-जल्दी खाए। (16) रत्नाधिक के पुकारने पर उनकी बात अनसुनी करना / (20) रत्नाधिक के कुछ कहने पर अपने स्थान पर बैठे-बैठे सुनना और उत्तर देना। (21) रत्नाधिक के कुछ कहने पर क्या कहा ? इस प्रकार पूछना। (22) रत्नाधिक के प्रति 'तू, तुम' ऐसे तुच्छतापूर्ण शब्दों का व्यवहार करना / (23) रत्नाधिक के प्रति कठोर शब्दों का प्रयोग करे, उद्दण्डतापूर्वक बोले, अधिक बोले / (24) 'जी हाँ' आदि शब्दों द्वारा रात्निक की धर्मकथा का अनुमोदन न करना। (25) धर्मकथा के समय रात्निक को टोकना, 'आपको स्मरण नहीं' इस प्रकार के शब्द कहना। (26) धर्मकथा कहते समय रात्निक को 'बस करो' इत्यादि कह कर कथा समाप्त करने के लिए कहना। (27) धर्मकथा के अवसर पर परिषद् को भंग करने का प्रयत्न करे। (28) रात्निक साधु धर्मोपदेश कर रहे हों, सभा--श्रोतृगण उठे न हों, तब दूसरी-तीसरी बार वही कथा कहना। (26) रात्निक धर्मोपदेश कर रहे हों तब उनको कथा का काट करना या बीच में स्वयं बोलने लगना। (30) रात्निक साधु की शय्या या प्रासन को पैर से ठुकराना। (31) रत्नाधिक के समान बराबरी पर आसन पर बैठना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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