________________ बत्तीस उपमाओं से मण्डित ब्रह्मचर्य] [217 अर्थात् जिनवरेन्द्र तीर्थकरों ने मैथन के सिवाय न तो किसी बात को एकान्त रूप से अनुमत किया है और न एकान्ततः किसी चीज का निषेध किया है-सभी विधि-निषेधों के साथ आवश्यक अपवाद जुड़े हैं। कारण यह है कि मैथुन (तीव्र) राग-द्वेष अथवा राग रूप दोष के विना नहीं होता। ब्रह्मचर्य की इस असामान्य महिमा के कारण ही देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस-किन्नरा / बंभयारि नमसंति, दुक्करं जं करति ते / / अर्थात् जो महाभाग दुश्चर ब्रह्मचर्य व्रत का आचरण करते हैं, ऐसे उन ब्रह्मचारियों को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर भी नमस्कार करते हैं-देवगण भी उनके चरणों में नतमस्तक होते हैं। बत्तीस उपमानों से मण्डित ब्रह्मचर्य १४२-तं बंभं भगवंतं 1. गहगणणक्खसतारगाणं वा जहा उडुबई / 2. मणिमुत्तसिलप्पवालरत्तरयणागराणं च जहा समुद्दो। 3. वेरुलिओ चेव जहा मणीणं / 4. जहा मउडो चेव भूसणाणं / 5. बत्थाणं चेव खोमजुयलं / 6. अरविदं चैव पुप्फजेठें / 7. गोसीसं चेव चंदणाणं / 8. हिमवंतो चेव ओसहीणं / 9. सीतोदा चेव णिण्णगाणं / 10. उदहीसु जहा सयंभूरमणो। 11. रुगयवरे चेव मंडलियपन्वयाणं पवरे। 12. एरावण इव कुजराणं / 13. सोहोन्व जहा मियाणं पवरे / 14. पवगाणं चेव वेणुदेवे / 15. धरणो जहा पण्णागदराया। 16. कप्पाणं चेव बंभलोए। 17. सभासु य जहा भवे सुहम्मा / 18. ठिइसु लवसत्तमव पवरा। 19. दाणाणं चेव अभयदाणं / 20. किमिराउ चेव कंबलाणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org