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________________ अस्तेय के आराधक कौन ?] [205 विवेचन—प्रस्तुत पाठ में बतलाया गया है कि अस्तेयव्रत को आराधना के लिए किन-किन योग्यताओं की आवश्यकता है ? जिस साधक में मूल पाठ में उल्लिखित गुण विद्यमान होते हैं, वही वास्तव में इस व्रत का पालन करने में समर्थ होता है। वैयावृत्य (सेवा) के दस भेद बतलाए गए हैं, वे इस प्रकार हैं वेयावच्चं वावडभावो इह धम्मसाहणनिमित्तं / . अन्नाइयाण विहिणा, संपायणमेस भावत्थो / / पायरिय-उवभाए थेर-तबस्सी-गिलाण-सेहाणं / साहम्मिय-कुल-गण-संघ-संगयं तमिह कायव्वं / ' अर्थात् धर्म की साधना के लिए विधिपूर्वक प्राचार्य आदि के लिए अन्न ग्रादि उपयोगी वस्तुओं का संपादन करना-प्राप्त करना वैयावृत्य कहलाता है। बैयावृत्य के पात्र दस हैं--(१) प्राचार्य (2) उपाध्याय (3) स्थविर (4) तपस्वी (5) ग्लान (6) शैक्ष (7) सार्मिक (8) कुल (8) गण और (10) संघ / साधु को इन दस की सेवा करनी चाहिए, अतएव वैयावृत्य के भी दस प्रकार होते हैं। 1. आचार्य-संघ के नायक, पंचविध आचार का पालन करने-कराने वाले / 2. उपाध्याय--विशिष्ट श्रुतसम्पन्न, साधुओं को सूत्रशिक्षा देने वाले / 3. स्थविर–श्रुत, वय अथवा दीक्षा की अपेक्षा वृद्ध साधु, अर्थात् स्थानांग-समवायांग आदि आगमों के विज्ञाता, साठ वर्ष से अधिक वय वाले अथवा कम से कम बीस वर्ष की दीक्षा वाले / 4. तपस्वी-मासखमण आदि विशिष्ट तपश्चर्या करने वाले। 5. ग्लान-रुग्ण मुनि / 6. शैक्ष-नवदीक्षित / 7. सार्धामक-सदृश समाचार वाले तथा समान वेष वाले / 8. कुल—एक गुरु के शिष्यों का समुदाय अथवा एक वाचनाचार्य से ज्ञानाध्ययन करने वाले। 6. गण–अनेक कुलों का समूह / 10. संघ–साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाओं का समूह / इन सब का वैयावृत्य निर्जरा के हेतु करना चाहिए, यश-कीत्ति आदि के लिए नहीं। भगवान ने वैयावत्य को प्राभ्यन्तर तप के रूप में प्रतिपादित किया है। इसका सेवन दोहरे लाभ का कारण है-वैधावत्यकर्ता कर्मनिर्जरा का लाभ करता है और जिनका वैयावृत्य किया जाता है, उनके चित्त में समाधि, सुख-शान्ति उत्पन्न होती है। सार्मिक बारह प्रकार के हैं / उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है 1. नामसार्मिक-दो या अधिक व्यक्तियों में नाम की समानता होना / जैसे देवदत्त नामक दो व्यक्तियों में नाम की समानता है। १-अभयदेवटीका से उद्धत / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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