________________ द्वितीय अध्ययन : सत्य एसनगताप सनद प्रथम संवरद्वार अहिंसा के विशद विवेचन के अनन्तर द्वितीय संवरद्वार सत्य का निरूपण किया जा रहा है। अहिंसा की समीचीन एवं परिपूर्ण साधना के लिए असत्य से विरत होकर सत्य की समाराधना आवश्यक है / सत्य को समाराधना के विना अहिंसा की आराधना नहीं हो सकती। वस्तुतः सत्य अहिंसा को पूर्णता प्रदान करता है। वह अहिंसा को अलंकृत करता है। अतएव अहिंसा के पश्चात् सत्य का निरूपण किया जाता है। सत्य की महिमा १२०–जंबू ! बिइयं य सच्चवयणं सुद्ध सुचियं सिवं सुजायं सुभासियं सुब्धयं सुकहियं सुदिट्ट सुपइट्ठियं सुपइट्ठियजसं सुसंजमिय-वयण-बुइयं सुरवर-णरवसभ-पवरबलवग-सुविहियजणबहुमयं, परमसाहुधम्मचरणं, तव-णियमपरिग्गहियं सुगइपहदेसगं य लोगुत्तमं वयमिणं / विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग-सिद्धिपहदेसगं अवितह, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं अस्थओ विसुद्ध उज्जोयकरं पभासगं भवइ सम्वभावाण जीवलोए, अविसंवाइ जहत्थमहुरं। पच्चवखं दयिवयं व जंतं अच्छेरकारगं अक्त्थं साणं सच्चेण महासमुहमज्झ वि मूढाणिया वि पोया / सच्चेण य उदगसंभमम्मि वि ण वुज्झइ ण य मरंति थाहं ते लहंति / सच्चेण य अगणिसंभमम्मि वि ण डझंति उज्जुगा मणुस्सा। सच्चेण य तत्ततेल्ल-तउलोहसीसगाई छिवंति धरेंति ण य डझंति मणुस्सा। पव्वयकडकाहि मुच्चंते ण य मरंति / सच्चेण य परिग्गहिया, असिपंजरगया समराओ वि णिइंति अणहा य सच्चवाई। वहबंधभियोगवेर-धोरेहि पमुच्चंति य अमित्तमज्झाहि णिइंति अणहा य सच्चवाई / सादेव्वाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रत्ताणं / तं सच्चं भगवं तित्थयरसुभासियं दसविहं, चोद्दसपुव्वीहिं पाहुडत्थविइयं, महरिसीण य समयप्पइण्णं, देविदरंदभासियत्थं, वेमाणियसाहियं, महत्थं, मंतोसहिविज्जासाहणत्थं, चारणगणसमणसिद्धविज्जं, मणुयगणाणं वंदणिज्ज, अमरगणाणं अच्चणिज्जं, असुरगणाण य पूणिज्जं, अणेगपासंडिपरिग्गहियं जं तं लोगम्मि सारभूयं, गंभीरयरं महासमुद्दाओ, थिरयरगं मेरुपवयाओ, सोमयरगं चंदमंडलाओ, दित्तयरं सूरमंडलाओ, विमलयरं सरयणहयलाओ, सुरभियरं गंधमादणाओ, जे वि य लोगम्मि अपरिसेसा मंतजोगा जवा य विज्जा य जंभगा य अत्थाणि य सत्थाणि य सिक्खाओ य आगमा य सव्वाई पि ताई सच्चे पइट्ठियाई / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org