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________________ 134 } [प्रश्नव्याकरणसूत : बु. 1, अ 4 लम्बे, कंचित-सिकुड़े हुए और उत्तम होते हैं। उनके उत्तरोष्ठ ऊपर वाले होठ भी सुन्दर होते हैं। उनके दांत दही, पत्ते पर पड़ी बूंद, कुन्द के फूल, चन्द्रमा एवं चमेली की कली के समान श्वेत वर्ण, अन्तररहित-एक दूसरे से सटे हुए और उज्ज्वल होते हैं। वे रक्तोत्पल के समान लाल तथा कमलपत्र के सदृश कोमल तालु और जिह्वा वाली होती हैं। उनकी नासिका कनेर की कली के समान, वक्रता से रहित, आगे से ऊपर उठी, सीधी और ऊँची होती है। उनके नेत्र शरदऋतु के सूर्यविकासी नवीन कमल, चन्द्रविकासी कुमुद तथा कुवलय-नील कमल के पत्तों के समूह के समान, शुभ लक्षणों से प्रशस्त, कुटिलता (तिर्छपन) से रहित और कमनीय होते हैं। उनकी भौहें किंचित् नमाये हुए धनुष के समान मनोहर, कृष्णवर्ण अभ्रराजि—मेघमाला के समान सुन्दर, पतली, काली और चिकनी होती हैं। उनके कान सटे हुए और समुचित प्रमाण से युक्त होते हैं। उनके कानों की श्रवणशक्ति अच्छी होती है / उनकी कपोलरेखा पुष्ट, साफ और चिकनी होती है / उनका ललाट चार अंगुल विस्तीर्ण और सम होता है। उनका मुख चन्द्रिकायुक्त निर्मल एवं परिपूर्ण चन्द्रमा के समान गोलाकार एवं सौम्य होता है। उनका मस्तक छत्र के सदश उन्नत--उभरा हा होता है। उनके मस्तक के केश काले, चिकने और लम्बे-लम्बे होते हैं। वे निम्निलिखित उत्तम बत्तीस लक्षणों से सम्पन्न होती हैं-- (1) छत्र (2) ध्वजा (3) यज्ञस्तम्भ (4) स्तूप (5) दामिनी--माला (6) कमण्डलु (7) कलश (8) वापी (8) स्वस्तिक (10) पताका (11) यव (12) मत्स्य (13) कच्छप (14) प्रधान रथ (15) मकरध्वज (कामदेव) (16) वज्र (17) थाल (18) अंकुश (16) अष्टापद -जना खेलने का पद या वस्त्र (20) स्थापनिका-ठवणी या ऊँचे पैदे वाला प्याला (21 (22) लक्ष्मी का अभिषेक (23) तोरण (24) पृथ्वी (25) समुद्र (26) श्रेष्ठ भवन (27) श्रेष्ठ पर्वत (28) उत्तम दर्पण (26) क्रीड़ा करता हुआ हाथी (30) वृषभ (31) सिंह और (32) चमर / उनकी चाल हंस जैसी और वाणी कोकिला के स्वर की तरह मधुर होती है। वे कमनीय कान्ति से युक्त और सभी को प्रिय लगती हैं। उनके शरीर पर न झुर्रियाँ पड़ती हैं, न उनके बाल सफेद होते हैं, न उनमें अंगहोनता होती है, न कुरूपता होती है। वे व्याधि, दुर्भाग्य-सुहाग-होनता एवं शोक-चिन्ता से (आजीवन) मुक्त रहती हैं / ऊँचाई में पुरुषों से कुछ कम ऊँची होती हैं। शृगार के प्रागार के समान और सुन्दर वेश-भूषा से सुशोभित होती हैं। उनके स्तन, जघन, : हाथ, पाँव और नेत्र--सभी कुछ अत्यन्त सुन्दर होते हैं। लावण्य-सौन्दर्य, रूप और यौवन के गुणों से सम्पन्न होती हैं / वे नन्दन वन में विहार करने वाली अप्सरानों सरीखी उत्तरकुरु क्षेत्र की मानवी अप्सराएँ होती हैं। वे आश्चर्यपूर्वक दर्शनीय होती हैं, अर्थात् उन्हें देखकर उनके अद्भुत सौन्दर्य पर आश्चर्य होता है कि मानवी में भी इतना अपार सौन्दर्य संभव है ! वे तीन पल्योपम की उत्कृष्ट--- अधिक से अधिक मनुष्यायु को भोग कर भी- तीन पल्योपम जितने दीर्घ काल तक इष्ट एवं उत्कृष्ट मानवीय भोगोपभोगों का उपभोग करके भी कामभोगों से तृप्त नहीं हो पाती और अतृप्त रह कर ही कालधर्म-मृत्यु को प्राप्त होती हैं। विवेचन-प्रस्तुत पाठ में भोगभूमि की महिलाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है / इस वर्णन में उनके शरीर का आ-नख-शिख वर्णन समाविष्ट हो गया है। उनके पैरों, अंगुलियों, नाखूनों जंघाओं, घुटनों आदि से लेकर मस्तक के केशों तक का पृथक्-पृथक् वर्णन है, जो विविध उपमाओं से अलंकृत है / इस शारीरिक सौन्दर्य के निरूपण के साथ ही उनकी हंस-सदृश गति और कोकिला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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