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________________ 102] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : शु. 1, अ. 3 चौरश्चौरापको मंत्री, भेदज्ञ: काणकऋयी। अन्नद: स्थानदश्चैव, चोरः सप्तविधः स्मृतः // अर्थात्-(१) स्वयं चोरी करने वाला (2) चोरी करवाने वाला (3) चोरी करने की सलाह देने वाला (4) भेद बतलाने वाला-कैसे, कब और किस विधि से चोरी करना, इत्यादि बताने वाला (5) चोरी का माल (कम कीमत में) खरीदने वाला (6) चोर को खाने की सामग्री देने वालाजंगल आदि गुप्त स्थानों में रसद पहुँचाने वाला (7) चोर को छिपने के लिए स्थान देने वाला, ये सात प्रकार के चोर कहे गए हैं / / चोरों को दी जाती हुई भीषण यातनाएँ ७५-ते य तत्थ कोरंति परिकप्पियंगमंगा उल्लंविज्जति रुक्खसालासु केइ कलुणाई विलयमाणा, प्रवरे चउरंगणियबद्धा पव्वयकडगा पमुच्चंते दूरपातबहुविसमपत्थरसहा अण्णे, य गय-चलणमलणयणिम्महिया कोरंति पावकारी अट्ठारसखंडिया य कोरंति मंडपरसूहि, केइ उक्कत्तकण्णोढणासा उपाडियणयण-दसण-वसणा जिभिदियछिया छिण्ण-कण्णसिरा पणिज्जते छिज्जंते य असिणा णिन्धिसया छिण्णहत्थपाया पमुच्चंते य जावज्जीव बंधणा य कोरंति, केइ परदव्वहरणलुद्धा कारग्गलणियलजुयलरुद्धा चारगाएहतसारा सयणविप्पमुक्का मित्तजणणिरक्खिया णिरासा बहुजण-धिक्कार-सद्दलज्जाविया अलज्जा अणुबद्धखुहा पारद्धा सो-उण्ह-तण्ह-वेयण-दुग्घट्टघट्टिया विवण्णमुह-विच्छविया विहलमइल-दुम्बला किलंता कासंता वाहिया य प्रामाभिभूयगत्ता परुढ-णह-केस-मंसु-रोमा छगमुत्तम्मि णियगम्मि खुत्ता। तत्थेव मया अकामगा बंघिऊण पाएसु कडिया खाइयाए छूढा, तत्थ य वग-सुणगसियाल-कोल-मज्जार-वंउसं-दंसगतु-पक्खिगण-विविह-मुहसयल-विलुत्तगत्ता कय-विहंगा, केइ किमिणा य कुहियवेहा भणिक्यणेहि सप्पमाणा सुठ्ठ कयं जं मउत्ति पायो तुट्टेणं जणेण हम्ममाणा लज्जावणगा य होंति सयणस्स वि य दोहकालं / ७५-वहां वध्यभूमि में उनके (किन्हीं-किन्हीं चोरों के)अंग-प्रत्यंग काट डाले जाते हैं-टुकड़ेटुकड़े कर दिये जाते हैं / उनको वृक्ष की शाखाओं पर टांग दिया जाता है। उनके चार अंगों-दोनों हाथों और दोनों पैरों को कस कर बांध दिया जाता है। किन्हीं को पर्वत की चोटी से नीचे गिरा दिया जाता है-फेंक दिया जाता है। बहत ऊँचाई से गिराये जाने के कारण उन्हें विषम-नुकीले पत्थरों की चोट सहन करनी पड़ती है। किसी-किसी का हाथी के पैर के नीचे कुचल कर कच दिया जाता है। उन प्रदत्तादान का पाप करने वालों को कुठित धार वाले–भोंथरे कुल्हाड़ों आदि से अठारह स्थानों में खंडित किया जाता है / कइयों के कान, प्रांख और नाक काट दिये जाते हैं तथा नेत्र, दांत और वृषण-अंडकोश उखाड़ लिये जाते हैं / जीभ खींच कर बाहर निकाल ली जाती है, कान काट लिये जाते हैं या शिराएँ काट दी जाती हैं। फिर उन्हें वधभूमि में ले जाया जाता है और वहाँ तलवार से काट दिया जाता है। (किन्हीं-किन्हीं) चोरों को हाथ और पैर काट कर निर्वासित कर दिया जाता है-देशनिकाला दे दिया जाता है। कई चोरों को आजीवन-मृत्युपर्यन्त कारागार में रक्खा जाता है। परकीय द्रव्य का अपहरण करने में लुब्ध कई चोरों को कारागार में सांकल बांध कर एवं दोनों पैरों में बेड़ियाँ डाल कर बन्द कर दिया जाता है। कारागार में बन्दी बना कर उनका धन छीन लिया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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