________________ भोर को दिया जाने वाला वण्ड] [ 101 देख कर उसे कैसा अनुभव होता होगा ! काश, वह इस दुर्दशा को पहले ही कल्पना कर लेता और चोरी के पापकर्म में प्रवृत्ति न करता / ऐसी अवस्था में कोई उसे त्राण या शरण नहीं देता, यहां तक कि उसके भाई-बंद भी उसका परित्याग कर देते हैं / प्रस्तुत पाठ में अठारह प्रकार के चारों या चौर्यप्रकारों का उल्लेख किया गया है। वे अठारह प्रकार ये हैं भलनं कुशलं तर्जा, राजभागोऽवलोकनम् / आमर्गदर्शनं शय्या. पदभंगस्तथैव च / / 1 / / विश्रामः पादपतनमासनं गोपनं तथा / खण्ड स्यखादनं चैव, तथाऽन्यन्माहराजिकम् / / 2 // पद्यारन्युदकरज्जूनां प्रदानं ज्ञानपूर्वकम् / एता प्रसूतयो ज्ञेया अष्टादश मनाषिभिः / / 3 / / १-डरते क्यों हो? मैं सब सँभाल लूगा, तुम्हारा बाल बांका नहीं होने दूंगा, इस प्रकार कह कर चोर को प्रोत्साहन देना 'भलन' कहलाता है। 2. चोर के मिलने पर उससे कुशल-क्षेम पूछना / 3. चोर को चोरी के लिए हाथ आदि से संकेत करना / 4. राजकीय कर-टैक्स को छिपाना--नहीं देना। 5. चोर के लिए संधि आदि देखना अथवा चोरी करते देख कर मौन रह जाना / 6. चोरों की खोज करने वालों को गलत-विपरीत मार्ग दिखाना / 7. चोरों को सोने के लिए शय्या देना। 8. चोरों के पद-चिह्नों को मिटाना। 9. चोर को घर में छिपाना या विश्राम देना / 10. चोर को नमस्कारादि करना-उसे सन्मान देना। 11. चोर को बैठने के लिए आसन देना / 12. चोर को छिपाना-छिपा कर रखना / 13. चोर को पकवान आदि खिलाना। 14. चोर को गुप्त रूप से आवश्यक वस्तुएँ भेजना। 15. थकावट दूर करने के लिए चोर को गर्म पानी, तैल प्रादि देना। 16. भोजन पकाने प्रादि के लिए चोर को अग्नि देना। 17. चोर को पोने के लिए ठंडा पानी देना। 18. चोर को चोरी करने के लिए अथवा चोरी करके लाये पशु को बांधने के लिए रस्सीरस्सा देना। ये अठारह चोरी की प्रसूति–कारण हैं। चोर को चोर जान कर ही ऐसे कार्य चौर्यकारण होते हैं / इससे स्पष्ट है कि केवल साक्षात् चोरी करने वाला ही चोर नहीं है, किन्तु चोरी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता देना, सलाह देना, उत्तेजना देना, चोर का आदर-सत्कार करना आदि भी चोरी के ही अन्तर्गत है / कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org