________________ 72] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : शु. 1, म. 2 सुग-परहिण-मयणसाल-कोइल-हंसकुले सारसे य साहिति पोसगाणं, वहबंधजायणं च साहिति गोम्मियाणं, धण-घण्ण-गवेलए य साहिति तक्कराणं, गामागर-णमरपट्टणे य साहिति चारियाणं, पारघाइय पंथघाइयायो य साहिति गंठिमेयाणं, कयं च चोरियं साहिति जगरगुत्तियाणं / लंछण-णिलंछण-धमणदूहण-पोसण-वणण-बवण-वाहणाइयाइं साहिति बहूणि गोमियाणं, धाउ-मणि-सिल-पवाल-रयणागरे य साहिति प्रागरोणं, पुष्कविहिं फलविहिं च साहिति मालियाणं, अग्यमहुकोसए य साहिति वणचराणं। ५४-इसी प्रकार (स्व-पर का अहित करने वाले मृषावादी जन) घातकों को भैंसा और शूकर बतलाते हैं, वागुरिकों-व्याधों को-शशक-खरगोश, पसय-मृगविशेष या मृगशिशु और रोहित बतलाते हैं, तीतुर, वतक और लावक तथा कपिजल और कपोत-कबूतर पक्षीघातकोंचिड़ीमारों को बतलाते हैं, झष-मछलियाँ, मगर और कछमा मच्छीमारों को बतलाते हैं, शंख (दीन्द्रिय जीव). अंक-जल-जन्तविशेष और क्षल्लक-कौड़ी के जीव धीवरों को बतला देते हैं, अजगर, गोणस, मंडली एवं दर्वीकर जाति के सों को तथा मुकुली-बिना फन के सपों को सँपेरों को-साँप पकड़ने वालों को बतला देते हैं, गोधा, सेह, शल्लकी और सरट-गिरगिट लुब्धकों को बतला देते हैं, गजकुल और वानरकुल अर्थात हाथियों और बन्दरों के झड पाशिकों-पाश द्वारा पकड़ने वालों को बतलाते हैं, तोता, मयूर, मैना, कोकिला और हंस के कुल तथा सारस पक्षी पोषकों-इन्हें पकड़ कर, बंदी बना कर रखने वालों को बतला देते हैं। प्रारक्षकों-कारागार आदि के रक्षकों को वध, बन्ध और यातना देने के उपाय बतलाते हैं। चोरों को धन, धान्य और गाय-बैल प्रादि पशु बतला कर चोरी करने की प्रेरणा करते हैं। गुप्तचरों को ग्राम, नगर, आकर और पत्तन आदि बस्तियाँ (एवं उनके गुप्त रहस्य) बतलाते हैं। ग्रन्थिभेदकों-गांठ काटने वालों को रास्ते के अन्त में अथवा बीच में मारने-लूटने-टांठ काटने आदि की सीख देते हैं / नगररक्षकोंकोतवाल आदिपुलिसकर्मियों को की हई चोरी का भेद बतलाते हैं। गाय आदि पशुओं का न करने वालों को लांछन-कान आदि काटना, या निशान बनाना, नपुंसक-बधिया करना, घमण-भैंस आदि के शरीर में हवा भरना (जिससे वह दूध अधिक दे), दुहना, पोषना---- जो आदि खिला कर पुष्ट करना, बछड़े को दूसरी गाय के साथ लगाकर गाय को धोखा देना अर्थात् वह गाय दूसरे के बछड़े को अपना समझकर स्तन-पान कराए, ऐसी भ्रान्ति में डालना, पीड़ा पहुँचाना, वाहन गाड़ी आदि में जोतना, इत्यादि अनेकानेक पाप-पूर्ण कार्य कहते या सिखलाते हैं। इसके अतिरिक्त (वे मृषावादी जन) खान वालों को गैरिक आदि धातुएँ बतलाते हैं, चन्द्रकान्त आदि मणियाँ बतलाते हैं, शिलाप्रबाल-मूगा और अन्य रत्न बतलाते हैं। मालियों को पुष्पों और फलों के प्रकार बतलाते हैं तथा वनचरों-भील आदि वनवाली जनों को मधु का मूल्य और मधु के छत्ते बतलाते हैं अर्थात् मधु का मूल्य बतला कर उसे प्राप्त करने की तरकीब सिखाते हैं। विवेचन-पूर्व में बतलाया गया था कि मृषावादी जन स्व और पर-दोनों के विघातक होते हैं / वे किस प्रकार उभय-विघातक हैं, यह तथ्य यहाँ अनेकानेक उदाहरणों द्वारा सुस्पष्ट किया गया है। जिनमें विवेक मूलत: है ही नहीं या लुप्त हो गया है, जो हित-अहित या अर्थ-अनर्थ का समीचीन विचार नहीं कर सकते, ऐसे लोग कभी-कभी स्वार्थ अथवा क्षुद्र-से स्वार्थ के लिए प्रगाढ़ पापकर्मों का संचय कर लेते हैं। शिकारियों को हिरण, व्याघ्र, सिंह आदि बतलाते हैं-अर्थात् अमुक स्थान पर भरपूर शिकार करने योग्य पशु मिलेंगे ऐसा सिखलाते हैं। शिकारी वहाँ जाकर उन पशुओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org