SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-टिप्पण] चेल्लणा का राजा श्रेणिक के प्रति कितना प्रगाढ़ अनुराग था इसका प्रमाण "निरयावलिका' में मिलता है / कोणिक, हल्ल और विहल्ल-ये तीनों चेल्लणा के पुत्र थे। -जैनागमकथाकोष नन्दा श्रोणिक की रानी थी। उसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। 11 अंगों का अध्ययन किया / 20 वर्ष तक संयम का पालन किया / अन्त में संथारा करके मोक्ष प्राप्त किया। विपुलगिरि राजगृह नगर के समीप का एक पर्वत / श्रागमों में अनेक स्थलों पर इसका उल्लेख मिलता है। बहुत से साधकों ने यहाँ पर संलेखना व संथारा किया था। स्थविरों की देखरेख में घोर तपस्वी यहाँ आकर संलेखना करते थे। जैन ग्रंथों में इन पांच पर्वतों का उल्लेख मिलता है : 1, वैभारगिरि 2. विपुल गिरि 3. उदयगिरि 4. सुवर्णगिरि 5. रत्नगिरि महाभारत में पांच पर्वतों के नाम ये हैं वैभार, वाराह, वृषभ, ऋषिगिरि और चैत्यक / वायुपुराण में भी पांच पर्वतों का उल्लेख मिलता है। जैसे-वैभार, विपुल, रत्नकूट, गिरिज और रत्नाचल / भगवती सूत्र के शतक 2, उद्देश 5 में राजगृह के वैभार पर्वत के नीचे महातपोपतीरप्रभव नाम के उष्णजलमय प्रस्रवण-निर्भर का उल्लेख है जो आज भी विद्यमान है। बौद्ध ग्रन्थों में इस निर्भर का नाम 'तपोद' मिलता है, जो सम्भवतः 'तप्तोदक' से बना होगा। चीनी यात्री फाहियान ने भी इसको देखा था। उक्कमेणं सेसा : उत्क्रमेण शेषा __ "अनुक्रम और उत्क्रम"। अनुक्रम का अर्थ है, नीचे ने ऊपर की ओर क्रमश: बढ़ना, तथा उत्क्रम का अर्थ है, ऊपर से नीचे की ओर क्रमश: उतरना। अनुक्रम को (In Serial Order) कहते हैं, तथा उत्क्रम को (In the Upward Order) कहते हैं। अनुत्तरौपपातिकदशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में दश कुमारों के देवलोक सम्बन्धी उपपात = जन्म (Rebirth) वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन तथा वारिषेण अनुक्रम से-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुए। दीर्घदन्त सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy