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________________ परिशिष्ट- - टिप्पण ] [ 56 गौतम (इन्द्र भूति) आपका मूल नाम इन्द्रभूति है, परन्तु गोत्रतः गौतम नाम से प्राबाल-वृद्ध प्रसिद्ध हैं। ___ गौतम, भगवान महावीर के सबसे बड़े शिष्य थे। भगवान् के धर्म-शासन के यह कुशल शास्ता थे, प्रथम गणधर थे। मगध देश के गोवर ग्राम के रहने वाले, गौतम गोत्रीय ब्राह्मण वसुभूति के यह ज्येष्ठ पुत्र थे। इनकी माता का नाम पृथिवी था। इन्द्रभूति वैदिक धर्म के प्रखर विद्वान् थे, गंभीर विचारक थे, महान् तत्त्ववेत्ता थे। एक वार इन्द्रभूति सोमिल ग्रार्य के निमन्त्रण पर पावापुरी में होने वाले यज्ञोत्सव में गए थे। उसी अवसर पर भगवान महावीर भी पावापुरी के बाहर महासेन उद्यान में पधारे हुए थे। गवान् की महिमा को देखकर इन्द्रभूति उन्हें पराजित करने की भावना से भगवान के समवसरण में पाये / किन्तु वे स्वयं ही पराजित हो गये / अपने मन का संशय दूर हो जाने पर वे अपने पांच-सौ शिष्यों सहित भगवान् के शिष्य हो गये / गौतम प्रथम गणधर हुए। आगमों में और आगमोत्तर साहित्य में गौतम के जीवन के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा मिलता है। इन्द्रभूति गौतम दीक्षा के समय 50 वर्ष के थे। 30 वर्ष साधू पर्याय में और 12 वर्ष केवली पर्याय में रहे। अपने निर्वाण के समय अपना गण सुधर्मा को सौपकर गुणशिलक चैत्य में मासिक अनशन करके भगवान् के निर्वाण से 12 वर्ष बाद 62 वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए। शास्त्रों में गणधर गौतम का परिचय इस प्रकार का दिया गया है। वे भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य थे। सात हाथ ऊँचे थे। उनके शरीर का संस्थान और संहनन उत्कृष्ट प्रकार का था / सुवर्ण-रेखा के समान गौर वर्ण थे। उग्र तपस्वी, महातपस्वी, घोरतपस्वी, घोर ब्रह्मचारी, और विपुलतेजोलेश्या से सम्पन्न थे / शरीर में अनासक्त थे / चौदह पूर्वधर थे। मति, श्रु त, अवधि और मनः पर्याय-चार ज्ञान के धारक थे। सर्वाक्षरसन्निपाती थे। वे भगवान महावीर के समीप में उक्कुड ग्रासन से नीचा सिर करके बैठते थे। ध्यानमद्रा में स्थिर रहते हए. संयम और तप से प्रात्मा को भावित करते विचरते थे। गणधर गौतम के जीवन की एक विशिष्ट घटना का उल्लेख इस प्रकार है---- उपासकदशांग में वर्णन है कि जब आनन्द श्रावक ने अपने को अमुक मर्यादा तक के अवधिज्ञान प्राप्ति की बात उनसे कही तो उन्होंने कहा-इतनी मर्यादा तक का अवधिज्ञान श्रावक को नहीं हो सकता / तब अानन्द ने कहा-मुझे इतना स्पष्ट दीख रहा है। अतः मेरा कथन सद्भूत है / यह सुनकर गणधर गौतम शंकित हो गए और अपनी शंका का निवारण करने के लिए भगवान् के पास पहुँचे / भगवान् ने आनन्द की बात को सही बताया, और प्रानन्द श्रावक से क्षमापना करने को कहा / गौतम स्वामी ने अानन्द के समीप जाकर क्षमायाचना की। विपाकसूत्र में मृगापुत्र राजकुमार का जीवन वर्णित है। उसमें उसे भयंकर रोगग्रस्त कहा गया है। उसके शरीर से असह्य दुर्गन्ध आती थी, जिससे उसे तल घर में रखा जाता था। एक बार गणधर गौतम मृगापुत्र को देखने गए। उसकी बीभत्स रुग्ण अवस्था देखकर चार ज्ञान के धारक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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