________________ परिशिष्ट-टिप्पण] [ 57 गुणशिलक (गुणशील)-चैत्य राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में एक चैत्य (उद्यान) था। राजगृह के बाहर अन्य बहुत से उद्यान होंगे, परन्तु भगवान् महावीर गुणशिलक उद्यान में ही विराजित होते थे। __ यहाँ पर भगवान् के समक्ष सैकड़ों श्रमण और श्रमणियाँ तथा हजारों श्रावक-श्राविकाएं बनी थीं। वर्तमान में 'गुणावा' जो नवादा स्टेशन से लगभग तीन मील पर है, प्राचीन काल का यही गुणशिलक चैत्य माना जाता है / श्रेणिक राजा मगध देश का सम्राट् था। अनाथी मुनि से प्रतिबोधित होकर भगवान् महावीर का परम भक्त हो गया था / ऐसी एक जन-श्रु ति है। राजा श्रेणिक का वर्णन जैन ग्रन्थों तथा बौद्ध ग्रन्थों में प्रचुर मात्रा में मिलता है। इतिहासकार कहते हैं कि श्रोणिक राजा हैहय कुल और शिशुनाग वंश का था। बौद्ध ग्रन्थों में 'सेनिय' और 'बिविसार' ये दो नाम मिलते हैं। जैन ग्रन्थों में 'सेणिय, भिभसार और भंभासार नाम उपलब्ध हैं। भिभसार और भंभासार नाम कैसे पड़ा? इस सम्बन्ध में श्रेणिक के जीवन का एक सुन्दर प्रसंग है श्रेणिक के पिता राजा प्रसेनजित कुशाग्रपुर में राज्य करते थे। एक दिन की बात है, राजप्रासाद में सहसा आग लग गई / हरेक राजकुमार अपनी-अपनी प्रिय वस्तु लेकर बाहर भागा। कोई गज लेकर, तो कोई अश्व लेकर, कोई रत्नमणि लेकर / परन्तु श्रेणिक मात्र एक "भंभा" लेकर ही वाहर निकला था। श्रोणिक को देखकर दूसरे भाई हँस रहे थे, पर पिता प्रसेनजित प्रसन्न थे; क्योंकि श्रेणिक ने अन्य सब कुछ छोड़कर एकमात्र राज्यचिह्न की रक्षा की थी। इस पर राजा प्रसेनजित ने उसका नाम 'भिभसार', या 'भंभासार' रखा / भिभसार शब्द ही संभवतः आगे चलकर उच्चारण भेद से बिंबसार बन गया। धारिणी देवी श्रेणिक राजा की पटरानी थी। धारिणी का उल्लेख आगमों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ___ संस्कृत साहित्य के नाटकों में प्रायः राजा की सबसे बड़ी रानी के नाम के आगे 'देवी' विशेषण लगाया जाता है, जिसका अर्थ होता है-रानियों में सबसे बड़ी अभिषिक्त रानी, अर्थात्पटरानी। राजा श्रोणिक की अनेक रानियाँ थी, उनमें धारिणी मुख्य थी। इसीलिए धारिणी के आगे 'देवी' विशेषण लगाया गया है। देवी का अर्थ है-पूज्या। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org