________________ [ अनुत्तरौपपातिकदशा जम्बू आर्य सुधर्मा के परम शिष्य तथा प्रार्य प्रभव के प्रतिबोधक / आगमों में प्रायः सर्वत्र जम्बू एक परम जिज्ञासु के रूप में प्रतीत होते हैं / जम्बू राजगृह नगर के समृद्ध, वैभवशाली-इभ्य-सेठ के पुत्र थे। पिता का नाम ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था। जम्बू कुमार की माता ने जम्बू कुमार के जन्म से पूर्व स्वप्न में जम्बूवृक्ष देखा था, अत: पुत्र का नाम जम्बू कुमार रखा / सुधर्मा स्वामी की दिव्य वाणी से जम्बू कुमार के मन में वैराग्य जागा / अनासक्त जम्बू को माता-पिता के अत्यन्त प्राग्रह से विवाह स्वीकृत करना पड़ा और पाठ इभ्य-वर सेठों की कन्याओं के साथ विवाह करना पड़ा। विवाह की प्रथम रात्रि में जम्बू कुमार अपनी पाठ नव विवाहिता पत्नियों को प्रतिबोध दे रहे थे। उस समय एक चोर चोरी करने को आया / उसका नाम प्रभव था / जम्बू कुमार की वैराग्यपूर्ण वाणी श्रवण कर वह भी प्रतिबुद्ध हो गया। 501 चोर, 8 पत्नियां, पत्नियों के 16 माता-पिता, स्वयं के 2 माता-पिता और स्वयं जम्बू कुमार-इस प्रकार 528 ने एक साथ सुधर्मा के पास दीक्षा ग्रहण की। जम्बू कुमार 16 वर्ष गृहस्थ में रहे, 20 वर्ष छद्मस्थ रहे, 44 वर्ष केवली पर्याय में रहे। 80 वर्ष की आयु भोग कर जम्बू स्वामी अपने पाट पर प्रभव को स्थापित कर सिद्ध बुद्ध और मुक्त हुए / इस अवसर्पिणी काल के यही अन्तिम केवली थे / अंग साक्षात् जिनभाषित एवं गणधर-निबद्ध जैन सूत्र-साहित्य अंग कहलाता है। आचारांग से लेकर विपाकश्र त तक के ग्यारह अंग तो अभी तक भी विद्यमान हैं, परन्तु वर्तमान में बारहवाँ अंग अनुपलब्ध है, जिसका नाम 'दृष्टिवाद' है। 'दष्टिवाद'-चतुर्दश पूर्वधर प्राचार्य भद्रबाहु तथा दश पूर्वधर वज्रस्वामी के बाद में सारा पूर्व साहित्य अर्थात् ; सारा 'दृष्टिवाद' विच्छिन्न हो गया। अन्तकृत दशा यह आठवाँ अंग-सूत्र है, जिसमें अपनी प्रात्मा का अधिकाधिक विकास करके अपने वर्तमान जीवनकाल में ही सम्पूर्ण आत्म-सिद्धि का लाभ पाने वाले और अन्ततः मुक्त होने वाले साधकों को जीवन-चर्या का तपोमय सुन्दर वर्णन है / अनुत्तरौपपातिक दशा यह नवमा अंग-सूत्र है, जिसमें तेतीस महापुरुषों की तपोमय जीवन-चर्या का सुन्दर वर्णन है। धन्य अनगार की महती तपोमयी साधना का सांगोपांग वर्णन है। इस में वर्णित पुरुष अनुत्तरौपपाती हुए हैं, अर्थात् विजयादि अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं, और भविष्य में एक भव अर्थात्-मनुष्य. भव पाकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org