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________________ 30 [ अनुत्तरौपपातिकदशा अणगारे ससदं गच्छइ, ससई चिटुइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंस-सोणिएणं, हयासणे विव भासरासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तब-तेयसिरीए अईव अईव उसोभेमाणे] उवसोभेमाणे चिट्ठइ। अनन्तर श्रमण भगवान् महावीर अन्यदा कदाचित् काकन्दी नगरी के सहस्राम्र-वन उद्यान से निकले और बाहर जनपदों में विहार करने लगे। धन्य अनगार ने श्रमण भगवान महावीर के तथारूप स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अङ्गों का अध्ययन किया और इसके पश्चात वह संयम और तप से अपने प्रात्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तब वह धन्य अनगार उस उदार तप से स्कन्दक की तरह यावत् [उदार, विपुल, प्रदत्त, प्रगृहीत, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्यरूप, मंगलरूप, श्रीसम्पन्न, उत्तम उदग्र-उत्तरोत्तर उज्ज्वल, उत्तम उदार और महान प्रभावशाली तप से शुष्क हो गये, रूक्ष हो गये, मांस रहित हो गये, उनके शरीर की हड्डियाँ चमड़े से ढकी हुई रह गई। चलते समय हड्डियाँ खड़खड़ करने लगीं / वे कृश-दुबले हो गये। उनकी नाड़ियाँ सामने दिखाई देने लगीं। वे केवल अपने आत्मबल से ही गमन करते थे, आत्मबल से ही खड़े होते थे। तथा वे इस प्रकार दुर्बल हो गये कि भाषा बोलकर थक जाते थे, भाषा बोलते समय थक जाते थे और भाषा बोलने के पहले, 'मैं भाषा बोलूगा ऐसा विचार करने मात्र से भी थक जाते थे। जैसे सूखी लकड़ियों से भरी हुई गाड़ी, पत्तों से भरी हुई गाड़ी, पत्त तिल और सूखे सामान से भरी हुई गाड़ी, एरंड की लकड़ियों से भरी हुई गाड़ी, कोयले से भरी हुई गाड़ी, ये सब गाड़ियाँ धूप में अच्छी तरह सुखाकर जव चलती हैं, खड़-खड़ आवाज करती हुई चलती हैं और आवाज करती हुई खड़ी रहती हैं, इस प्रकार जब धन्य अनगार चलते, तो उनकी हड्डियाँ खड़-खड़ आवाज करतीं और खड़े रहते हुए भी खड़-खड़ अावाज करती। यद्यपि वे शरीर से दुर्बल हो गये थे, तथापि वे तप से पुष्ट थे। उनका मांस और खून क्षीण हो गये थे। राख के ढेर में दबी हुई अग्नि की तरह वे तप से, तेज से और तपस्तेज की शोभा से अतीवअतीव] शोभित हो रहे थे। विवेचन-सूत्र स्पष्ट है। इसका सम्पूर्ण विषय सुगमतया मूलार्थ से ही ज्ञात हो सकता है / उल्लेखनीय केवल इतना है कि यद्यपि तप और संयम की कसौटी पर चढ़कर धन्य ग्रनगार का शरीर अवश्य कृश हो गया था, किन्तु उससे उनका प्रात्मा अलौकिक बलशाली हो गया था, जिसके कारण उनके मुख का प्रतिदिन बढ़ता हुग्रा तेज अग्नि के समान देदीप्यमान हो रहा था। धन्य मुनि को शारीरिक दशा : पैर और अंगुलियों का वर्णन १०-धण्णस्स णं अणगारस्स पायाणं प्रयमेयारूवे तवरूवलावष्णे होत्या, से जहानामए सुक्कछल्ली इ वा कट्टपाउया इ वा जरग्गओवाहणा इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पाया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अटिचम्मछिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंससोणियत्ताए। धण्णस्स णं प्रणगारस्स पायंगुलियाणं अयमेयारूवे तवरूबलावणे होत्था-से जहानामए कलसंगलिया इ वा मुग्गसंगलिया इ वा माससंगलिया इ वा, तरुणिया छिण्णा, उण्हे दिण्णा, सुक्का समाणो मिलायमाणो चिट्ठति, एवामेव धण्णस्स पायंगुलियानो सुक्कामो [लुक्खायो निम्मंसानो प्रटिचम्मछिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस] सोणियत्ताए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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