________________ 10 ] [ अनुत्तरौपपातिकदशा प्रश्न-"भन्ते देव-लोक से आयु-क्षय होने पर भव-क्षय होने पर और स्थिति-क्षय होने पर वह जालीदेव कहाँ जायगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ?" उत्तर—“गौतम ! वहाँ से वह महाविदेह वास से सिद्धि प्राप्त करेगा।" निक्षेप ___जम्बू ! इस प्रकार श्रमण यावत् निर्वाणसंप्राप्त भगवान महावीर ने अनुत्तरौपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। विवेचन-यहाँ जाली कुमार का वर्णन प्रतिपादित किया गया है। वह वर्णन यहां संक्षेप में किया गया है, क्योंकि इस सूत्र में कथित विषय 'ज्ञातासूत्र' के प्रथम अध्ययन के --जिसमें मेघकुमार के विषय में कहा गया है—विषय के समान ही है / अर्थात् 'ज्ञातासूत्र' के प्रथम अध्ययन में जिस प्रकार मेघकुमार के विषय में प्रतिपादन किया गया है, उसी प्रकार इस सूत्र के प्रथम अध्ययन में जालीकुमार के विषय में भी प्रतिपादन समझ लेना चाहिए। यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि-मेघकुमार जाली अनगार के समान अनुत्तर विमान में ही उत्पन्न हुअा था तथापि मेघकुमार का वर्णन अनुत्तरौपपातिक सूत्र में नहीं है और ज्ञातासूत्र में है, ऐसा क्यों ? उत्तर यह है कि मेघकुमार का वर्णन छठे अंग में इसलिए किया गया है कि उसमें धर्मयुक्त पुरुषों की शिक्षा-प्रद जीवन-घटनाओं का वर्णन है। मेघकुमार के जीवन में कितनी ही ऐसी घटनाएं वर्णन की गई हैं, जिनके पढ़ने से प्रत्येक व्यक्ति को अत्यंत लाभ हो सकता है। किन्तु अनुत्तरौपपातिक सूत्र में केवल सम्यक्चारित्र पालन करने का फल बताया गया है। अत: मेघकुमार के चरित्र में विशेषता दिखाने के लिए उसका चरित्र नवें अङ्ग में न देकर छठे ही अङ्ग में दे दिया गया है। 2-10 अध्ययन मयाली आदि कुमार 6 एवं सेसाणं वि नवण्हं भाणियव्वं / नवरं सत्त धारिणिसुप्रा / वेहल्लवेहायसा चेल्लणाए / अभप्रो नन्दाए। पाइल्लाणं पंचण्हं सोलस वासाई सामण्णपरियायो / तिण्हं बारस-बारस वासाइं। दोण्हं पंच बासाइं। पाइल्लाणं पंचण्हं आणुपुटवीए उववायो विजए वेजयंते जयंते अपराजिए सब्वटुसिद्ध / दोहदंते सव्वदसिद्ध / उक्कमेणं सेसा / अभनो विजए / सेसं जहा पढमे / अभयस्स नाणत्तं, रायगिहे नयरे, सेणिए राया, नंदा देवी सेसं तहेव / "एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्त / " 1. देखिए सू. 1 पृ. 1. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org